उन्होंने चुप रहने को कहा और बोले, ‘‘सुनो मांबाप से बढ़ कर माफ करने वाला कोई नहीं है. तुम सीधा अपने घर जाओ और सब सचसच बता दो. सचाई में बड़ी ताकत होती है. वे लोग तुम्हारे पछतावे को भी सम झेंगे और माफ भी करेंगे साथ ही सीने से लगाएंगे.’’
‘‘और मैं कैसे अपनेआप को माफ कर पाएंगी,’’ कह कर सुधा रोने लगी.
‘‘अपनेआप को सुधार कर एक अच्छी बेटी बन कर,’’ अंकल ने सम झाया, ‘‘देखो बेटी कुदरत ने सभी को सोचनेसम झने की बराबर शक्ति दी है. जो लोग इस का सही उपयोग करते हैं वे हमेशा विजयी होते हैं. हां हम सभी आखिर हैं तो मनुष्य ही न गलतियां भी हो जाती हैं. पर सही मनुष्य वही है जो अपनी गलतियों को सम झे, माने और उन से सबक ले, सचाई के साथ आगे बढ़े. हां एक बात और याद रखना सच नंगा होता है. उस को देखने और बोलने के लिए बड़ी हिम्मत की जरूरत होती है. यह भी सम झ लो तुम को अब हिम्मत से काम लेना होगा.’’
‘‘अगर मांपापा ने माफ नहीं किया और घर से निकाल दिया तब?’’ सुधा का मन शंकाओं से घिरा था.
‘‘तुम अभी बच्ची हो इसलिए अभी नहीं सम झोगी पर मेरा विश्वास करो वे तुम्हारे मातापिता हैं. तुम किस दर्द से गुजर रही हो तुम बताओ या न बताओ उन को सब पता होगा. अच्छा अब रोना बंद करो और कुछ अच्छी बात सोचो.’’
‘‘अंकल आप कहां जा रहे हैं?’’ सुधा थोड़ा सामान्य हो चली थी.
‘‘मैं भी पटना ही जा रहा हूं. वहीं रहता हूं. पटना में मैं फिजिक्स का प्रोफैसर हूं. दिल्ली में सेमिनार अटैंड करने आया था... लेकिन ट्रेन से उतरने के बाद मैं तुम को नहीं पहचानता.’’