सुबह जब नींद खुली तो उसे बहुत अच्छा लगा. वह अपनेआप को तरोताजा पा रही थी. होंठों पर मुसकान थी कि तभी यादों का एक रेला सारी ताजगी उड़ा ले गया. वह फिर सहम गई और चुपचाप वाशरूम में घुस गई. उसे आज घर कुछ ज्यादा शांत लगा. वैसे सुधा का घर शांत ही रहता है. उस के पापा बहुत नियम और कायदे के पक्के हैं. आज की खामोशी थोड़ी बो िझल लग रही थी. उसे सुबह ही चाय पीने की आदत थी, इसलिए वह चाय बनाने रसोई में पहुंची.
‘‘चाय पीओगी मां?’’ उस ने पैन उठाते हुए प्यार से मां से पूछा.
‘‘नहीं,’’ मां की कड़क आवाज से डर गई.
‘‘हमें पापा के साथ पी चुके हैं तुम पी लो.‘‘
वह चुपचाप चाय बनाने लगी. उस ने निश्चय कर लिया पापा के औफिस जाते वह मां से बात करेगी. दीपक भी स्कूल जा चुका था. चाय ले कर वह अपने कमरे में आ कर पढ़ने की टेबल को ठीक करने लगी. पता नहीं आगे पढ़ पाएगी या नहीं. सभी लोग उस पर इतनी जल्दी विश्वास नहीं कर सकते हैं. कहीं कालेज से नाम ही न कटवा दें. वह जिद्द भी नहीं कर सकती. लीला देवी कमरे में आई और टेबल के पास खडी़ हो बोली, ‘‘क्या कर रही हो सुधा?’’
‘‘कुछ नहीं मां... आओ न,’’ सुधा ने मां को अपने बैड पर बैठाया और फिर खुद जमीन पर बैठ अपना सिर मां की गोद में रख दिया.
‘‘मां हमें तुम से कुछ बात करनी है.’’
‘‘हां बोल.’’
मां के पैर पकड़ बोली, ‘‘मु झे माफ कर दो मां मु झ से बहुत बड़ी भूल हो गई. मैं बहुत पछतावे में हूं... मां मैं बहकावे आ गई थी,’’ और वह फूटफूट कर रो रही थी.