‘‘बूआ ने रोजी के पापा को शादी के लिए मनाने की भरसक कोशिश की, मगर वे टस से मस नहीं हो रहे थे...’’
‘‘क्या रोजी डिसूजा क्रिश्चियन है? लल्ला तुम्हारा क्या दिमाग खराब हो गया है? क्या हमारी जाति में लड़कियों का अकाल पड़ गया है, जो हम विजातीय बहू घर लाएं? मैं दिवंगत भैयाभाभी को क्या मुंह दिखाऊंगी? मुझ उपेक्षित विधवा को दोनों ने मन से सहारा दिया था. उन की उम्मीदें पूरी करना मेरा फर्ज है... सारे समाज में हमारी खिल्ली उड़ेगी वह अलग,’’ सुमित्रा ने नाराज होते हुए कहा.
‘‘उफ, बूआ, आप नाहक परेशान हो रही हैं. आजकल अंतर्जातीय विवाह को सहर्ष स्वीकार किया जाता है... मांपापा जिंदा होते तो वे भी इनकार नहीं करते. आप पहले रोजी से मिल तो लो... बहुत सभ्य और संस्कारी लड़की है. आप को जरूर पसंद आएगी. बूआ हम दोनों एकदूसरे से प्यार करते हैं... जातिधर्म का क्या करना है... जीवन में प्यारविश्वास की अहमियत होती है,’’ मैं ने बूआ को समझाते हुए कहा.
‘‘मैं कह देती हूं लल्ला तुम अपनी पसंद की लड़की ला सकते हो, मुझे कोई एतराज नहीं होगा, किंतु विजातीय नहीं चलेगी,’’ बूआ ने भी अपना निर्णय सुना दिया.
बूआ अपनी शादी के 10 दिन बाद ही विधवा हो गई थीं. फूफाजी का रोड ऐक्सीडैंट में देहांत हो गया था. बूआ के ससुराल वालों ने उन से रिश्ता खत्म कर लिया. रोतीबिलखती बूआ की चीखपुकार ससुराल के दरवाजे न खुलवा सकी थी. उस दुखदाई घड़ी में मेरे मांपापा ने उन्हें सहारा देते हुए कहा था, ‘‘जीजी, हमारे रहते खुद को बेसहारा और अकेला न समझो,’’ और फिर बूआ हमारे साथ ही रहने लगीं.