अभिषेक अपनी कैंसर की रिपोर्ट को हाथ में ले कर बैठेबैठे यह ही सोच रहा था कि क्या करे, क्या न करे. सबकुछ तो था उस के पास. वह इस सोने के देश में आया ही था सबकुछ हासिल करने, मगर उस का गणित कब और कैसे गलत हो गया, वह समझ नहीं पाया. हर तरह से अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखने के बावजूद क्यों और कब उसे यह भयंकर बीमारी हो गई थी. सब से पहले उस ने अपनी बड़ी बहन को फोन किया तो उन्होंने फौरन अपने गुरुजी को सूचित किया और समस्या का कारण गुरुजी ने पितृदोष बताया था.
छोटी बहन भी फोन पर बोली, ‘‘भैया, आप लोग तो पूरे अमेरिकी हो गए हो, कोई पूजापाठ, कनागत कुछ भी तो नहीं मानते, इसलिए ही आज दंडस्वरूप आप को यह रोग लग गया है.’’ यह सुन कर अभिषेक का मन वापस अपनी जड़ों की तरफ लौटने को बेचैन हो गया. सोने की नगरी अब उसे सोने का कारावास लग रही थी. यह कारावास जो उस ने स्वयं चुना था अपनी इच्छा से.
अभिषेक और प्रियंका 20 वर्षों पहले इस सोने के देश में आए थे. अभिषेक के पास वैसे तो भारत में भी कोई कमी नहीं थी पर फिर भी निरंतर आगे बढ़ने की प्यास ने उसे इस देश में आने को विवश कर दिया था. प्रियंका और अभिषेक दोनों बहुत सारी बातों में अलग होते हुए भी इस बात पर सहमत थे कि भारत में उन का और उन के बेटे का भविष्य नहीं है.
प्रियंका अकसर आंखें तरेर कर बोलती, ‘है क्या इंडिया में, कूड़ाकरकट और गंदगी के अलावा.’