सियोना का मोबाइल काफी देर से बज रहा था. वह जानबूझ कर अपनी मां के फोन को इग्नोर कर रही थी. बारबार फोन कटता और फिर से उस की मां उसे कौल करतीं. लेकिन शायद वह फैसला कर चुकी थी कि आज फोन नहीं उठाएगी. मगर उस की मां थीं कि बारबार फोन मिलाए जा रही थीं. हार कर उस ने मोबाइल बंद कर दिया और लैपटौप औन कर अपने ब्लौग पर कुछ नया टाइप करने लगी.
डायरी से शुरू हुआ सफर अब ब्लौग का रूप ले चुका था. अपने फैंस के कमैंट पढ़ कर सियोना एक पल को मुसकरा उठती पर दूसरे ही पल उस की आंखें नम भी हो जातीं.
ऐसा आज पहली बार नहीं हुआ था. सियोना अकसर अपनी मां का फोन आते देख विचलित हो उठती. उस के मन में गुस्से का ज्वार अपने चरम पर होता और वह मां का फोन इग्नोर कर देती. यदि कभी फोन उठाती भी तो नपेतुले शब्दों में बात करती और फिर मैं बिजी हूं कह कर फोन काट देती.
सियोना की मां एकाकी जीवन जी रही थीं. पिताजी तो अपने दफ्तर के काम में अति व्यस्त रहते. कभीकभार अपनी बेटी के लिए समय निकाल कर उस से बात करते या यों कहें कि अपनी बेटी के बारे में जानकारी लेते.
सौफ्टवेयर कंपनी में काम करने वाली सियोना चेहरे से आकर्षक, बोलने में बहुत सभ्य थी, लेकिन उस के व्यवहार में कुछ कमियां उसे दूसरों से कमतर ही रखतीं. न तो वह किसी से खुल कर बात कर पाती और न ही किसी को अपने करीब आने देती. अपनेआप को खुद में समेटे बहुत अकेली सी थी. बस ब्लौग ही उस का एकमात्र सहारा था जहां वह अपने दर्द को शब्दों में ढाल देती.