नीले मोती से अक्षरों में लिखा था, ‘अर्चना, मैं आप को पंसद करता हूं, बहुत... बहुत... बहुत... इतना जितना कभी किसी ने किसी को नहीं किया होगा. आप के साथ जिंदगी बिताना चाहता हूं मैं, इसलिए सिर्फ प्रेमनिवेदन नहीं कर रहा हूं, ब्याह का प्रस्ताव भी रख रहा हूं. न जाने फिर कब मिलना हो, इसलिए जवाब अभी ही दे दें प्लीज. ‘हां’ या ‘ना’ जो भी होगा मैं कबूल कर लूंगा.
‘...अखिल आनंद.’
खत पढ़ कर कंपकंपी छूट गई अर्चना की... जैसे जाड़ा लग कर ताप चढ़ रहा हो और न जाने किस भावना के अधीन हो कर उस ने खत के पीछे ही 2 पंक्तियां लिख डाली थीं, कांपते हाथों से... ‘हमारे घरों में ब्याहशादी के फैसले मातापिता करते हैं. पिता मेरे हैं नहीं, इसलिए जो बात करनी हो मेरी मां से करें.
‘...अर्चना.’
अर्चना ने नजरें झुका कर उसे पत्र लौटाया था, जिसे पढ़ कर भावावेश में अखिल ने उस का हाथ थाम लिया था, ‘आप की तो ‘हां’ होगी न?’
और लज्जाते हुए अर्चना ने ‘हां’ में गरदन हिला दी थी और उसी पल उस के दिल में बस गया था वह.
परीक्षा की तैयारी करतेकरते किताबकापियों में भी जैसे अखिल का चेहरा नजर आने लगा था अर्चना को. उस का वह स्पर्श याद आते ही तनमन सिहर उठता था उस का. पढ़ने में दिल नहीं लग रहा था, जबकि परीक्षा में कुछ ही दिन बाकी थे. पढ़ना जरूरी है, यह भी जानती थी वह, पर क्या करती मन के हाथों मजबूर हो चुकी थी. दिल हसरतों के मोती चुनने लगा था और आंखें सौसौ ख्वाब बुनने लगी थीं, लेकिन तब कहां जानती थी अर्चना कि उस की जिंदगी में प्यार की यह चांदनी सिर्फ चार दिन के लिए ही छाई थी... हां, सिर्फ चार दिन के लिए ही.