मीठी नींद के झोंकों में रेखा ने सहसा महसूस किया कि दरवाजे की घंटी बज रही है. धीरे से आंखें खोलीं और सामने रखी घड़ी में समय देखा तो 5 बज रहे थे. इतनी सुबह कौन घंटी बजा रहा है? सोचते हुए वह अलसाई सी लेटी रही.
दरवाजे की घंटी लगातार बजती गई. आखिर वह बिस्तर से उठी और अपने कमरे से निकल कर गैलरी में आई. बगल के कमरे में झांका तो बेटी ईशा सो रही थी. असमंजस में वह दरवाजे की तरफ बढ़ी और ताला खोलने के बाद दोनों पट खोल दिए.
सामने सी.आर.पी.एफ. के 2 अधिकारी गंभीर भाव लिए खड़े थे. उन की टोपियां उन के हाथों में थीं. रेखा ने हैरत भरी नजरों से उन्हें देखा तो जवाब में उन की आंखों में आंसू छलक आए. उसे अचानक अपने पतिका ध्यान आ गया, ‘‘रवि...’’ वह बौखलाई सी बोली, ‘‘वह ठीक तो हैं न?’’
उन्होंने अपनी आंखें बंद कर लीं. आंसू बंद आंखों से बह कर गालों पर ढुलकने लगे. दर्द की कई रेखाएं उन के चेहरों पर उभर आईं.
‘‘क्या हुआ रवि को?’’ रेखा चिल्लाई.
कमांडर पंत आगे बढ़े और रेखा का कंधा पकड़ लिया. उन के साथ सुपरिंटेंडेंट कमांडर गुप्ता भी आगे बढ़ आए, ‘‘मैडम, रवि हमारे बीच नहीं रहे. कल रात बोडो उग्रवादियों ने उन को...’’
इस के आगे रेखा कुछ न सुन सकी. एक दर्दनाक चीख उस के कंठ से निकल गई. खुले मुंह पर हाथ चला गया. वह बेहोश सी होने लगी कि पंत व गुप्ता ने उसे संभाल लिया. इस के बाद तो रेखा की दबी आवाज वीभत्स चीखों में बदल गई. ईशा अपने कमरे से उठ कर आंखें मलते हुए ड्राइंगरूम में आई.