रेखा और ईशा ने एकदूसरे की तरफ देखा, दोनों का मुंह आश्चर्य से खुला का खुला रह गया. इतने में कमांडर पंत कहीं से कमरे में आए और टीवी का स्विच बंद करते हुए बोले, ‘‘क्यों सुन रहे हो यह खबर?’’ मगर समाचारवाचक का बोला वह वाक्य उन के कानों में पड़ ही गया, ‘‘कहा जा रहा है कि कमांडर शर्मा का रेशमा से 1 बच्चा भी है.’’
रेखा ने अपना सिर पकड़ लिया. पति की मौत की खबर ने उसे इतना अचंभित नहीं किया था जितना कि इस खबर ने कर दिया. रवि ने उसे धोखे में रखा, उस के साथ विश्वासघात किया, उस के रहते हुए किसी अन्य महिला से शारीरिक संबंध... इतना ही नहीं उस से बच्चा भी. रेखा को सभी कुछ अनजान व अजनबी प्रतीत हो रहा था. उसे खुद का वजूद भी एक भ्रम लग रहा था.
यह बात तो साफ थी कि रवि उग्रवादियों के साथ मुठभेड़ में नहीं मरा था और न ही वह देश के लिए शहीद हुआ था. उग्रवादी गुट ने आपसी रंजिश में उस की जान ली थी.
‘‘मेरे पापा के कोई और बच्चा नहीं है, सिर्फ मैं ही हूं,’’ कहते हुए ईशा बिस्तर पर फिर लुढ़क गई थी.
कमांडर पंत अब रेखा से नजरें चुराने लग गए थे. रवि की हरकतों ने संभवत: सी.आर.पी.एफ. के कर्मचारियों के चरित्र पर धब्बा लगा दिया था.
रात करीब 12 बजे एक वैन घर के आगे आ कर रुकी. रेखा की मां, भाई व उन की पत्नियां घबराए हुए से घर में घुसे और बौखलाई नजरों से सभी ने रेखा व ईशा को देखा. आफिस के लोगों ने उन तक सूचना पहुंचा दी थी. उन को देख कर रेखा की जान में जान आई. भाइयों की बीवियां ईशा की तरफ बढ़ीं, भाई व मां रेखा की तरफ. मां रोते हुए बोलीं, ‘‘यह क्या हो गया, रेखा? मेरी तरह तू भी...’’