अपना बैग पैक करते हुए अजय ने कविता से बहुत ही प्यार से कहा, ‘‘उदास मत हो डार्लिंग, आज सोमवार है, शनिवार को आ ही जाऊंगा. फिर वैसे ही बच्चे तुम्हें कहां चैन लेने देते हैं. तुम्हें पता भी नहीं चलेगा कि मैं कब गया और कब आया.’’
कविता ने शांत, गंभीर आवाज में कहा, ‘‘बच्चे तो स्कूल, कोचिंग में बिजी रहते हैं... तुम्हारे बिना कहां मन लगता है.’’
‘‘सच मैं कितना खुशहाल हूं, जो मुझे तुम्हारे जैसी पत्नी मिली. कौन यकीन करेगा इस बात पर कि शादी के 20 साल बाद भी तुम मुझे इतना प्यार करती हो... आज भी मेरे टूअर पर जाने पर उदास हो जाती हो... आई लव यू,’’ कहतेकहते अजय ने कविता को गले लगा लिया और फिर बैग उठा कर दरवाजे की तरफ बढ़ गया. कविता का उदास चेहरा देख कर फिर प्यार से बोला, ‘‘डौंट बी सैड, हम फोन पर तो टच में रहते ही हैं, बाय, टेक केयर,’’ कह कर अजय चला गया.
कविता दूसरी फ्लोर पर स्थित अपने फ्लैट की बालकनी में जा कर जाते हुए अजय को देखने लगी. नीचे से अजय ने भी टैक्सी में बैठने से पहले सालों से चले आ रहे नियम का पालन करते हुए ऊपर देख कर कविता को हाथ हिलाया और फिर टैक्सी में बैठ गया.
कविता ने अंदर आ कर घड़ी देखी. सुबह के 10 बज रहे थे. वह ड्रैसिंगटेबल के शीशे में खुद को देख कर मुसकरा उठी. फिर उस ने रुचि को फोन मिलाया, ‘‘रुचि, क्या कर रही हो?’’
रुचि हंसी, ‘‘गए क्या पति?’’
‘‘हां.’’
‘‘तो क्या प्रोग्राम है?’’