दुनिया में अगर हमें किसी से डर लगता है तो वे हैं हमारी आदरणीय श्रीमतीजी. आप इसे हमारी कमजोरी समझ सकते हैं. लेकिन यह सच है. हम उन से डरते हैं, इस कटु सच को स्वीकार करने में कोई संकोच या शर्म महसूस नहीं करते. सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र के वंश में ही हमारा भी जन्म हुआ है, ऐसी हमारी धारणा है.
पत्नी से भला कौन नहीं डरता है? सृष्टि में मुझे तो ऐसे दुर्लभ जीव कम ही नजर आते हैं जो अपनी पत्नी से बिलकुल नहीं डरते. मुझे तो लगता है कि पतिपत्नी का रिश्ता बना ही इसी उद्देश्य के लिए है कि दोनों साथ जीएं जरूर लेकिन एक डरता रहे और दूसरा डराता रहे.
धार्मिक दृष्टिकोण से भी हमारी धारणा पुष्ट होती है. पुरानी मान्यताओं में भी देखा गया है कि देवियों ने किस तरह से त्रिशूल, भाला या अन्य दूसरे हथियारों से अपने दुश्मनों को मारा है. बस, समझ लीजिए कि उन्हीं के आधुनिक संस्करण कमोबेश हमारे घरों में भी अवतरित होते रहते हैं.
फर्क केवल इतना रहता है कि त्रिशूल का स्थान एक अत्यंत प्रभावशाली बहु-उपयोगी हथियार ले लेता है जिसे ‘बेलन’ कहा जाता है. ‘बेलन’ को हथियार की श्रेणी में रखा जाए या नहीं, यह रक्षा विशेषज्ञों के लिए बहस का विषय हो सकता है किंतु अनुभवी और शिकार बने लोगों के लिए इस के हथियार होने में जरा भी संदेह नहीं.
इस के बहुउपयोगी रूप के विषय में भी कोई विवाद नहीं है. रोटी बिना बेलन के कैसे बेली जा सकती है? रसोईघर चाहे कितना भी मौडर्न हो जाए किंतु बेलन का स्थान कोई भी घरेलू उपकरण नहीं ले सकता. स्त्री भी इसे सहज ही छोड़ने की कल्पना नहीं कर सकती. यह सहजीवन का उत्तम उदाहरण अथवा प्रतीक है. बिना बेलन के पत्नीजी की कल्पना असंभव ही है.