वृंदा को लगा था कि शादी की बात सुनते ही सास के ऊपर दुखों का पहाड़ टूट पड़ेगा. ‘ऐसा कैसे होगा? मेरे जीतेजी ऐसा नहीं हो सकता.’ इस तरह का कोई वाक्य वे बोलेंगी. किंतु उन्होंने तो सपाट सा जवाब दे कर पल्लू झाड़ लिया.
वृंदा का गला भर्रा गया, ‘मां, आप ऐसा कैसे बोल रही हैं? आप मुझे बहू बना कर इस घर में लाई हैं. क्या आप यह सब होने देंगी? मेरे लिए कुछ भी नहीं करेंगी?’
‘मैं क्या करूंगी? तुम्हारी बहन है, तुम देखो.’
‘लाख मेरी बहन है, घुस तो आप के बेटे के संसार में रही है न. आप अपने बेटे को समझा सकती हैं. कुंदा का विरोध कर सकती हैं. मैं ने आप से कहा तो था कि मैं डिलिवरी के लिए अपनी मां के यहां चली जाती हूं, तब आप ने स्वास्थ्य की दुहाई दे कर मुझे यहीं रोक लिया था. आप के कहने पर ही मैं ने कुंदा को यहां बुलाया था.’
हमेशा उन के सामने चुप रह जाने वाली वृंदा का इतना बोलना सास से सहन नहीं हुआ और उन का क्रोध भभक पड़ा, ‘अब मुझे क्या पता था कि तुम्हारी बहन के लक्षण खराब हैं. पता नहीं कौन से संस्कार दिए थे तुम्हारी मां ने. वैसे यह कोई बड़ी बात भी नहीं हो गई है. तुम्हें कोई घर से निकाल रहा है क्या? रवि तो कहता है कि दूसरी शादी भी कर लूंगा तब भी वृंदा को इस घर से बेघर नहीं करूंगा. अपनी जिम्मेदारी की समझ है उसे.’
तो ये भी रवि की योजना में शामिल हैं. मां के दिए संस्कार की बात कर रही हैं. जो काम कुंदा कर रही है वही तो इन का बेटा भी कर रहा है बल्कि दो कदम आगे बढ़ कर अपनी पहली पत्नी और 2 बच्चियों को छोड़ कर. इन्होंने कौन से संस्कार दिए हैं अपने बेटे को. एहसान बता रही हैं कि घर से नहीं निकाला जा रहा है उसे. अरे कौन होते हैं ये लोग घर से निकालने वाले? शादी कर के आई है यहां. पूरा हक है इस घर पर. यहां से निकलना होगा तो वह खुद ही निकल जाएगी.