आयुषी ने उदास मन से अपने बैडरूम की 1-1 चीज को देखा. पलंग, अलमारी, ड्रैसिंगटेबल, इधरउधर बिखरे पड़े कपड़े... सब कुछ उदासी में डूबा नजर आ रहा था. हर चीज जैसे किसी गहरी वेदना से गुजर रही हो. कमरे में सन्नाटा पसरा था. यह सन्नाटा आयुषी को डरा नहीं रहा था, परंतु उस के मन में अवसाद पैदा कर रहा था. जितना वह सोचती, उतना ही उस का मन और ज्यादा गहरे अवसाद से भर जाता.
बैडरूम की ही नहीं, फ्लैट की हर चीज को उस ने पूरी चाहत से सजाया था, अपने लिए, अपने प्रियतम के लिए. कितने सुंदर सपने तब उस की आंखों में तैरा करते थे. उन सपनों को साकार करने के लिए उस ने इतना बड़ा कदम उठाया था कि बिना शादी के वह प्रतीक के साथ पत्नी की तरह रहने को तैयार हो गई थी.
परंतु आज उस का सारा उत्साह खत्म हो गया था. वह समझ नहीं पा रही थी ऐसा क्यों और कैसे हुआ? उस ने तो पूरी निष्ठा से प्रतीक से प्यार किया था, अपना तनमन सौंपा था, परंतु उस के मन में आयुषी के लिए कोई प्यार था ही नहीं. उस का प्यार मात्र दिखावा था. वह बस उस की देह को भोगना चाहता था. उस ने उसे अपने फंदे में फंसा कर न केवल उस के शरीर का उपभोग किया, बल्कि उस की कमाई पर भी ऐश की. आज वह उस की चालबाजियों को समझ रही थी, परंतु अब समझने से फायदा भी क्या?
दोनों ने साथसाथ एमबीए की पढ़ाई की थी. इसी दौरान दोनों की आपस में नजदीकियां बढ़ी थीं. प्रतीक उसे चाहत भरी निगाहों से देखता रहता था और वह उसे देख कर मुसकराती थी. फिर दोनों एकदूसरे के नजदीक आए. हायहैलो से बातचीत शुरू हुई और फिर बहुत जल्द ही एक दिन प्रतीक ने कहा, ‘‘आयुषी, क्या तुम मेरे साथ बाहर चलना पसंद करोगी?’’