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15 वर्षों से अमेरिका में नौकरी करते करते ऐसा लगने लगा जैसे अब हम यहीं के हो कर रह गए हैं. 3 साल में 1 बार अपनी मां के पास अपने देश भारत जाना होता है. बच्चे भी यहीं की बोली बोलने लगे हैं और यहीं का रहनसहन अपना चुके हैं. कई बार मैं अपने पति से कहती कि क्या हम यहीं के हो कर रह जाएंगे? पति कहते कि कर भी क्या सकते हैं? आजकल की नौकरियां हैं ही ऐसी. जहां नौकरी वहीं हम. पहले जमाने की तरह तो है नहीं कि सुबह 9 से शाम 5 बजे तक की सरकारी नौकरी करो और आराम से जिंदगी जीयो और न ही वह जमाना रहा कि पति की नौकरी से ही घर खर्च चल जाए और बचत भी हो जाए. अत: मुझे तो नौकरी करनी ही थी.

मेरे पति आकाश के मांबाबूजी यानी अपने सासससुर को मैं मम्मीपापा ही पुकारती हूं. वे भारत में ही हैं और उन की बहन आशी यानी मेरी ननद भी मुंबई में ही रह रही हैं. उन के पति मर्चेंट नेवी में हैं और 2 सुंदर बेटियां हैं. मम्मीपापा कहने को तो अकेले रहते हैं अपने फ्लैट में, लेकिन उन की देखभाल तो आशी दीदी ही करती हैं. मगर मम्मीपापा को कहां अच्छा लगता है कि वे अपनी बेटी पर बोझ बनें. वे तो भारत में विवाह के बाद पराया धन मानी जाती हैं. लेकिन अब तो मम्मीपापा के अकेले रहने की उम्र भी नहीं रही. अत: हम लोग बारबार उन से आग्रह करते कि हमारे पास अमेरिका में ही रहें. पर वे तो अपने देश, अपने घर के मोह में ऐसे बंधे हैं कि उन्हें छोड़ना ही नहीं चाहते.

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