खैर एक बार तो हम मम्मी को ले कर वापस अमेरिका आ गए, लेकिन मेरे ननदोई निशांत के शिप से वापस आने पर हम फिर भारत आए और मम्मी को भी साथ ले आए. वहां आकाश ने निशांत से उन के दूसरी स्त्रियों से संबंध के बारे में पूछा तो निशांत ने उन संबंध को खुले शब्दों में स्वीकारते हुए कहा, ‘‘आकाश आप तो इतने सालों से अमेरिका में रह रहे हैं. आप भी इन्हें बुरा समझते हैं? मेरे संबंधों के बारे में आशी को सब कुछ मालूम है और मैं ने भी आशी को पूरी छूट दी है कि वह भी अगर चाहे तो किसी से संबंध रख सकती है. बस हमारे परिवार पर उन संबंधों का बुरा असर नहीं पड़ना चाहिए. आकाश आप तो पढ़ेलिखे हैं. आप को तो इन संबंधों से नाराज नहीं होना चाहिए.’’
आकाश ने कहा, ‘‘निशांत आप ठीक कहते हैं, किंतु मम्मी को कौन समझाए?’’
मैं ही समझाऊंगा मम्मी को भी. चलिए अभी बहुत रात हो गई है. कल सुबह बात करते हैं.
अगले दिन सुबह नाश्ता कर निशांत मम्मी के पास बैठ गए और बोले, ‘‘मम्मी, मुझे पता है आप बहुत नाराज हैं मुझ से और आशी से. आप का नाराज होना वाजिब भी है. आप को तो पता है आशी और मेरी शादी हमारे समाज के नियमों के अनुरूप हो गई, लेकिन हम दोनों ही कहीं एकदूसरे के लिए बने ही नहीं थे. हम दोनों ने कोशिश भी की कि हमारा रिश्ता अच्छा बना रहे, लेकिन कहीं कुछ तो कमी थी जिसे हम दोनों दूर करने में असमर्थ थे. शादी का मुख्य उद्देश्य तो शारीरिक संबंध और संतानोत्पत्ति ही होता है. अब बच्चे तो हम पैदा कर चुके हैं. लेकिन कहीं हमारे शारीरिक संबंधों में वह मधुरता नहीं है, जो एक पतिपत्नी के बीच होनी चाहिए. मैं तो वैसे भी 6 महीने शिप पर रहता हूं. ऐसे में आशी तो मेरे पास होती नहीं तो यदि वह सुख मुझे कहीं और से प्राप्त होता है तो उस में क्या बुराई है? मैं ने तो आशी को भी पूरी छूट दी है कि वह भी चाहे जिस से संबंध रख सकती है. उस की भी इच्छाएं हैं. मैं उन मर्दों में से नहीं जो स्वयं तो मौजमस्ती करें और पत्नी को समाज के नियमों की आड़ में तिलतिल मरने के लिए छोड़ दें. अगर आशी के पास वह पड़ोसी आता है तो क्या बुराई है उस में?’’