उस दिन मणिकांत का मन अशांत था. आजकल अकसर रहने लगा है, इसीलिए दफ्तर में देर तक बैठते हैं. हालांकि बहुत ज्यादा काम नहीं होता है, परंतु काम के बहाने ही सही, वे कुछ अधिक देर तक औफिस में बैठ कर अपने मन को सुकून देने का प्रयास करते रहते हैं. दफ्तर के शांत वातावरण में उन्हें अत्यधिक मानसिक शांति का अनुभव होता है. घर उन्हें काटने को दौड़ता है, जबकि घर में सुंदर पत्नी है, जवान हो रहे 2 बेटे हैं. वे स्वयं उच्च पद पर कार्यरत हैं. दुखी और अशांत होने का कोई कारण उन के पास नहीं है, परंतु घर वालों के आचरण और व्यवहार से वे बहुत दुखी रहते हैं.
जिस प्रकार का घरपरिवार वे चाहते थे वैसा उन्हें नहीं मिला. पत्नी उन की सलाह पर काम नहीं करती, बल्कि मनमानी करती रहती है और कई बार तो वे उस की नाजायज फरमाइशों पर बस सिर धुन कर रह जाते हैं, परंतु अंत में जीत पत्नी की ही होती है और वह अपनी सहीगलत मांगें मनवा कर रहती है. उस के अत्यधिक लाड़प्यार और बच्चों को अतिरिक्त सुविधाएं मुहैया कराने से बच्चे भी बिगड़ते जा रहे थे.
उन का ध्यान पढ़ाई में कम, तफरीह में ज्यादा रहता था. देर रात जब वे घर पहुंचे तो स्वाति उन का इंतजार कर रही थी. नाराज सी लग रही थी. यह कोई नई बात नहीं. किसी न किसी बात को ले कर वह अकसर उन से नाराज ही रहती थी.
वे चुपचाप अपने कमरे में कपड़े बदलने लगे, फिर बाथरूम में जा कर इत्मीनान से फ्रैश हो कर बाहर निकले. पत्नी, बेटों के साथ बैठी टीवी देख रही थी.