‘‘मिहिका, ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि विवाह की परिणति एक सुखद परिवार में हो, यही मान लिया गया है. विवाह का परिणाम 2 लोगों में प्रेम का पनपना तो कभी सोचता ही नहीं कोई. एक पुरुष अपने हिस्से का प्यार बाहर भी तलाश लेता है, लेकिन घर पर अपना साम्राज्य स्थापित करने से बाज नहीं आता. परिवार और संतान से जुड़ कर स्त्री को आजीवन यह दासता स्वीकार करने के लिए विवश होना पड़ता है.’’
‘‘न जाने आदमी आधिपत्य क्यों चाहता है? अपनी मनमानी करता है? अचल को भी मेरी किसी बात में न सुनना पसंद नहीं. औफिस में साथ काम करने वालियों से खूब दोस्ती है, लेकिन मेरा किसी आदमी से हंस कर बात करना बरदाश्त नहीं, जोे के लिए भी आप के कहने से मानना पड़ा या शायद इन दिनों बढ़ती महंगाई में अपनी सैलरी से मनचाहे खर्च नहीं कर पा रहे थे. मेरा बाहर निकलना तो अभी भी जी जलाता ही है इन का.’’
‘‘तुम्हारे हाथ का दर्द कैसा है?’’ पारिजात के सहसा पूछे गए इस प्रश्न से मिहिका अचकचा गई कि क्या पारिजात को मेरा अचल की बुराई करना नागवार गुजरा है या फिर...
मिहिका सोच ही रही थी कि पारिजात ने अगला सवाल खड़ा कर दिया, ‘‘क्या सचमुच तुम बाथरूम में फिसली थीं परसों? फिसलने से कलाई ऐसे तो नहीं मुड़ती.’’
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मिहिका ने छलछलाती आंखों को मूंद कर सिर झाका लिया. फिर
अपने को संयत कर बोली, ‘‘आप सही समझे, फिसली नहीं थी वाशरूम में. झाठ बोला था मैं ने आप से और औफिस में बाकी सब से भी.’’