‘‘यदि पतिपत्नी भी प्रेमीप्रेमिका की तरह एकदूसरे को अपना सबकुछ मान लें, प्रेमांध हो कर निगाहें एकदूजे पर टंगी रहें तो विवाह का दूसरा नाम प्रेम होगा, पर इस के लिए पति की आस्था और समर्पण भी तो जरूरी है न मिहिका.’’
‘‘तो मैं क्या करूं? किसी को कैसे बदलूं?’’ मिहिका ने उसांस भरते हुए पूछा.
‘‘बदलना तुम्हें है. अपनी खुशियां वहां ढूंढ़ो जहां मिलें. अपने प्यार को यों व्यर्थ बहने दे रही हो? किसी बंजर में हरियाली क्यों नहीं करतीं? कुछ और नहीं तो औफिस वालों से हंसीमाजक कर मन बहलाया करो न अपना. पता है तुम्हारी चर्चा यहां के मेल स्टाफ में चलती रहती है. लोग कहते हैं तुम मैरिड ही नहीं लगतीं. तुम्हारी सुंदरता का सिर्फ मैं ही नहीं पूरा स्टाफ कायल है.’’
पारिजात की शरारत भरी बातें सुन उदास मिहिका की हंसी छूट गई, ‘‘आप भी तो कितने हैंडसम हैं, चर्चे तो आप के भी खूब होते होंगे. शादी नहीं करना चाहते ठीक है, लेकिन क्या कभी किसी से प्यार भी नहीं हुआ?’’ मिहिका ने भी नटखट अंदाज में पूछ लिया.
पारिजात कुछ सोचता सा गंभीर हो गया, ‘‘कई दिनों से अपने बारे में कुछ बताना चाहता था तुम्हें,’’ कह कर वह कुछ देर चुप हो गया जैसे अपनी बात कहने के लिए शब्द ढूंढ़ रहा हो. फिर बोला, ‘‘हुआ था प्यार, स्विट्जरलैंड में एक लड़की से. कुछ दिनों तक मेरे साथ रही थी मेरे घर पर. फिर एक दिन अचानक दोपहर में मैं घर आया. तो घर पर सन्नाटा था. मैं ने सोचा वह सो रही है.