‘‘तुम्हारा तात्पर्य है कि मैं ठीक होना ही नहीं चाहता.’’
‘‘नहीं. पर आप के मन में दृढ़- विश्वास होना चाहिए कि आप एक दिन पूरी तरह स्वस्थ हो जाएंगे,’’ कामना बोली.
‘‘अभी हमारे सामने मुख्य समस्या कल आने वाले अतिथियों की है. मैं नहीं चाहता कि तुम उन के सामने कोई तमाशा करो,’’ पिता बोले.
‘‘इस के बारे में कल सोचेंगे. अभी आप आराम कीजिए,’’ कामना बात को वहीं समाप्त कर बाहर निकल गई.
दूसरे दिन सुबह ही रोमा बूआ आते ही सुमन से बोलीं, ‘‘क्या कह रही हो भाभी, कितना अच्छा घरवर है, फिर 3-3 बेटियां हैं तुम्हारी और भैया बीमार हैं... कब तक इन्हें घर बिठाए रखोगी,’’ वे तो सुमन से यह सुनते ही भड़क गईं कि कामना विवाह के लिए तैयार नहीं है.
‘‘बूआ, आप परिस्थिति की गंभीरता को समझने का यत्न क्यों नहीं करतीं. मैं विवाह कर के घर बसा लूं और यहां सब को भूल जाऊं, यह संभव नहीं है,’’ उत्तर सुमन ने नहीं, कामना ने दिया.
‘‘तुम लोग तो मुझे नीचा दिखाने में ही लगे हो...मैं तो अपना समझ कर सहायता करना चाहती थी. पर तुम लोग मुझे ही भलाबुरा कहने लगे.’’
‘‘नाराज मत हो दीदी, कामना को दुनियादारी की समझ कहां है. अब तो सब कुछ आप के ही हाथ में है,’’ सुमन बोलीं.
कुछ देर चुप्पी छाई रही.
‘‘एक बात कहूं, भाभी,’’ रोमा बोलीं.
‘‘क्या?’’
‘‘क्यों न कामना के स्थान पर रचना का विवाह कर दिया जाए. उन लोगों को तो रचना ही अधिक पसंद है. लड़के ने किसी विवाह में उसे देखा था.’’
‘‘क्या कह रही हो दीदी, छोटी का विवाह हो गया तो कामना तो जीवन भर अविवाहित रह जाएगी.’’