यह सुनते ही विनय का चेहरा सफेद पड़ गया. बोला, ‘‘यह नहीं हो सकता डाक्टर... इतने छोटे बच्चे को कैंसर कैसे... यह नहीं...’’ शब्द उस के हलक में अटकने लगे. मन ही मन सोचने लगा कि काश, यह खबर झूठ निकले... काश टैस्ट रिपोर्ट गलत हो, क्योंकि उस का मन यह मानने को कतई तैयार नहीं हो रहा था.
‘‘विनय बीमारी उम्र नहीं देखती. आप हिम्मत रखिए... यह रोग गंभीर तो है, मगर लाइलाज नहीं है... हमारे अस्पताल में हर आधुनिक सुविधा उपलब्ध है. हम आज से ही कबीर का इलाज शुरू कर देते हैं... बस आप कुछ औपचारिकताएं पूरी कर दीजिए.’’
लड़खड़ाते कदमों के साथ विनय सारिका के पास पहुंचा. कबीर आंखें मूंदे सारिका से एक कहानी सुन रहा था. उस के भोले चेहरे पर शांति थी. विनय की आहट सुन कर उस ने धीरे से आंखें खोली. बोलीं, ‘‘पापा, मु झे यहां नहीं रहना, घर जाना है,’’ और उस ने विनय का बाजू पकड़ लिया.
‘‘हां बेटे हम बहुत जल्दी घर जाएंगे,’’ विनय ने भर्राए गले से कहा और फिर कबीर को छाती से लगा लिया.
कबीर ने फिर आंखें मूंद लीं. कुछ ही पलों में वह नींद के आगोश में चला गया. बीमारी से हुई कमजोरी अब उस के चेहरे पर साफ दिखने लगी थी.
खुद पर काबू करते हुए विनय ने सारिका को धीरेधीरे सब बताया. जो वज्रपात विनय पर हुआ था वही सारिका पर भी हुआ. उस ने कातर नजरों से सोए बेटे की ओर देखा.
यह कैसा मजाक किया कुदरत ने? उन्हें दुनिया में जो चीज सब से प्यारी है उसे ही छीनने की साजिश रच दी.