पिछला भाग पढ़ने के लिए- एक ही भूल: भाग-3
कम उम्र दिखने वाले एक युवक ने दरवाजा खोला. सारिका झट उसे पहचान गई. एक आखिरी उम्मीद मन में लिए सारिका उस नौजवान के सामने सोफे पर बैठी थी. एक मां की ममता उस से क्याक्या नहीं करवाती. दोनों के बीच कोई रिश्ता नहीं था, फिर भी दोनों का अंश कबीर में मौजूद था.
जिस दिन विनय को प्रमोशन मिली उस की खुशी का कोई ठिकाना ही नहीं था. सारिका को अपनी गोद में उठा कर उस ने सारे घर में घुमा दिया. खुश तो सारिका भी बहुत थी विनय के लिए, मगर कुछ और भी था जिस की उसे शिद्दत से चाह थी. विनय कामयाबी के नशे में इतना चूर हो गया कि उसे सारिका के भीतर का खालीपन दिख कर भी नहीं दिख पा रहा था.
टैस्ट की रिपोर्ट आने से पहले ही वह 2 सालों के लिए अमेरिका चला गया
था. रिपोर्ट देखने के बाद डाक्टर से उसे पता चला कि सारिका अब तक मां इसलिए नहीं बन पाई क्योंकि विनय कभी पिता नहीं बन सकता था. सारिका के ऊपर जैसे यह सुन कर गाज गिर पड़ी कि मातृत्व सुख से वंचित रहने के पीछे उस के पति की नपुंसकता है. विनय की यह शारीरिक कमी कैसे बता पाएगी सारिका उसे... वह इस बात से कितना आहत होगा, इस बात से सारिका बखूबी वाकिफ थी.
‘‘तो क्या मेरे मां बनने के सारे रास्ते बंद हैं?’’ सारिका ने कातरता से पूछा.
‘‘ऐसी बात नहीं है सारिका. तुम कोई बच्चा गोद ले कर भी मां बनने का सुख भोग सकती हो.’’