जनवरी में कड़ाके की ठंड और कोहरे के चलते दोपहर के बाद ही लगता है दिन ढल गया. पिछले एक महीने से कोहरे की यही स्थिति है. लगता है इस बार सर्दी पिछले सारे रिकार्ड तोड़ देगी.
शव यात्रा की बस जैसे ही श्मशान घाट पहुंची, कई लोगों ने आ कर बस को घेर लिया. बस के साथ 20-25 गाडि़यों का काफिला भी था. लगता था कि किसी बड़े आदमी का श्मशान पर आना हुआ है वरना आजकल 10-15 आदमी भी मुश्किल से जुट पाते हैं. अब किसे फुरसत है जो दो कदम जाने वाले के साथ चल सके.
अपनीअपनी गाडि़यों में से निकल कर लोग शव वाहन के पास आ कर जमा हो गए. अच्छी दक्षिणा मिलने की उम्मीद में राघव की आंखों में चमक आ गई. वह पिछले 20 सालों से अपने पूरे परिवार के साथ यहां है. अब तो उस का बेटा भी उस के काम में सहयोग करता है. बड़े बेटे खिल्लू ने तो चाय की गुमटी में एक छोटामोटा होटल ही खोल लिया है. अंदर बैठने की भी व्यवस्था है. 8-10 लोग कुरसियों पर बैठ कर आराम से चाय पी सकते हैं. दुकान में बीड़ी, सिगरेट, माचिस और बिस्कुट सभी कुछ मिलता है.
दुकान के करीब एक नल भी है. लोग हाथमुंह धो कर अकसर चाय की फरमाइश कर ही देते हैं. गरमियों में ठंडा भी मिलता है. कई बार भीड़ ज्यादा हो तो खिल्लू आवाज लगा कर जीवन को भी बुला लेता है. जीवन 14-15 साल का उस का छोटा भाई है. मां भी अकसर हाथ बंटाती रहती हैं. एक नौकर भी दुकान पर है. आजकल ठंड के कारण लोग भट्ठी के पास सिमट आते हैं और हाथ सेंकते रहते हैं. चाय का आर्डर भी खूब मिलता है. एक मुर्दे को जलाने में 3 साढ़े 3 घंटे तो लग ही जाते हैं.