ट्रिन...ट्रिन...ट्रिन...

प्रिया ने फोन उठाया, उधर सुशीला बूआ थीं.

‘‘हैलो बूआ, इतनी रात में फोन किया, कुछ खास बात है क्या?’’

‘‘खास ही है प्रिया, तुम से तो बताने में भी डर लग रहा है.’’

‘‘बूआ, पहेलियां मत बुझाओ, साफसाफ बताओ क्या हुआ?’’

वह घबरा कर बोली.

‘‘प्रिया, अभीअभी बनारस से उमा जीजी का फोन आया था, कह रही थीं कि बड़े भैया ने ब्याह कर लिया है.’’

‘‘क्या...’’

‘‘जीजी ने ही किसी तलाकशुदा से रिश्ता करवाया है.’’

सुनते ही प्रिया के हाथ से रिसीवर छूट गया. वह किंकर्तव्यविमूढ़ हो गई. उसे शर्म भी आ रही थी. सास, जेठानी और ननदें सभी उस का मजाक बनाएंगी. वह किसी को अपना मुंह कैसे दिखाएगी. प्रपुंज से कैसे कहेगी कि पापा ने शादी कर ली है. वह अपने आंसुओं को रोक नहीं पा रही थी.

अपनी शादी के समय भी बड़ी बूआ पर वह कितनी जोर से नाराज हो उठी थी जब उन्होंने कहा था, ‘अब रघुनाथ के लिए बड़ी मुश्किल आ जाएगी, उस का तो जीना भी दूभर हो जाएगा. उसे दूसरी शादी कर लेनी चाहिए.’

उसे याद आने लगा जब वह आगरा जाती थी तो कितने हक से मां के सारे सामान को सहेजती थी. पापा कहते भी थे, ‘अब इन्हें सहेजने का क्या फायदा? कौन सा जानकी अब दोबारा लौट कर आने वाली है? बिटिया, तुम्हें जो भी चाहिए वह तुम ले जाओ.’

‘नहीं पापा, प्रपुंज मेरा खयाल रखते हैं. मुझे ससुराल में बहुत आराम है. किसी चीज की कोई कमी नहीं है,’ वह कहती फिर भी आते समय पापा रुपयों की गड्डी उस की मुट्ठी में बंद कर देते थे. उस की शादी में भी पापा ने दिल खोल कर खर्च किया था. सिर से पैर तक जेवर दिए थे. उसे सबकुछ दिलवाया था.

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