प रदेसी शब्द से मेरा पहला परिचय भारतीय फिल्मों के माध्यम से ही हुआ. बचपन से ही मुझे फिल्में देखने का तथा पिताजी को न दिखाने का शौक था. इन शौकों की टकराहट में प्राय: पिताजी को ही अधिक सफलता मिलती थी इसलिए मुझ बदनसीब को रेडियो से सुने गानों से ही संतोष करना पड़ता था. इसी संतोष के दौरान जब मैं ने यह गाना सुना कि ‘परदेसियों से न अंखियां मिलाना...’ तो मैं बहुत परेशान हो उठा. मेरा हृदय नायिका के प्रति दया से भर उठा. मैं ने सोचा कि आखिर परदेसियों से अंखियां मिलाने में क्या परेशानी है. यह बेचारी क्यों बारबार इस तरह की बात कर रही है.
इस पंक्ति को बारबार दोहराने से मुझे लगा कि वाकई कोई गंभीर बात है वरना वह एक बार ही कह कर छोड़ देती. बहुत कशमकश के बाद भी जब मेरे बालमन को समाधान नहीं मिला तो मैं विभिन्न लोगों से मिला. सभी लोगों ने अपनीअपनी बुद्धि के हिसाब से जो स्पष्टीकरण दिए उस से मेरा दिमाग खुल गया.
सब से पहले मैं अपने इतिहास के टीचर से मिला. सभी टीचर मुझे शुरू से ही रहस्यमय प्राणी लगते थे. जिन मुश्किल किताबों और सवालों के डर से मुझे बुखार आ जाता था वे उन्हें मुंहजबानी याद थीं. जो गणित के सवाल मुझे पहाड़ की तरह लगते थे वे उन्हें चुटकियों में हल कर देते थे.
इतिहास के मास्टरजी ने मुझे ऊपर से नीचे तक देखा. फिर बोले, ‘‘परदेसियों से अंखियां लड़ाना वाकई एक गंभीर समस्या है. यह इतिहास का खतरनाक लक्षण है. इतिहास गवाह है कि जब भी हम ने परदेसियों से अंखियां लड़ाईं, हमें क्षति उठानी पड़ी. मुहम्मद गोरी ने जयचंद से अंखियां लड़ाईं, जिस से हमारे देश में दिल्ली सल्तनत की नींव पड़ी. दौलत खां लोदी ने बाबर से अंखियां मिलाईं और हमारे भारत में मुगल आ गए.