कहानी- मधु शर्मा
मृणाल ने इस बार बहुत धीमी और डरी आवाज में पूछा, ‘तो फिर आप मुझे कैसे जानते हैं?’ उस ने इस बार भी मृणाल के प्रश्न का कोई जवाब नहीं दिया. उस की इस खामोशी और गंभीरता ने मृणाल के दिमाग में एक द्वंद्व पैदा कर दिया कि यह व्यक्ति कैसे जानता है मुझे, मैं कहां मिली हूं इस से. फिर खुद को संभालते हुए बड़ी भद्रता के साथ फिर बात शुरू की. ‘सर, प्लीज आप बताइए न, आप मुझे कैसे जानते हैं, अगर आप मुझ से कभी मिले ही नहीं.’
‘मैं ने कब कहा कि मैं आप से कभी नहीं मिला.’
अरे, अभी तो कहा आप ने.’
‘आप ने शायद ठीक से सुना नहीं. मैं ने कहा, आप मुझ से कभी नहीं मिलीं.’
‘हां, तो एक ही बात है.’
‘एक बात नहीं है.’ उस ने फिर से गंभीरता से जवाब दिया और मृणाल उस के चेहरे को पढ़ने की कोशिश करने लगी.
उसे समझ नहीं आ रहा था कि कैसे वह जाने कि वह कौन है और उस व्यक्ति के चेहरे के भावों ने मृणाल के मन और दिमाग में जो अंतर्द्वंद्व पैदा कर दिया था, वह उन पर भी नियंत्रण नहीं रख पा रही थी. फिर अचानक उस के मुंह से निकल गया, ‘क्या करते हैं सर, आप यह तो बता दीजिए?’
और बहुत देर बाद उस ने फिर मुसकराहट के साथ जवाब दिया, ‘कुछ खास नहीं. आजकल कुछ लिखना शुरू किया है.’
‘मतलब आप किसी पत्रिका या फिर किसी तरह के लेख लिखते हैं. कुछ बताइए न अपने बारे में? दरअसल, मुझे भी पढ़नेलिखने का काफी शौक है.’