कहानी- मधु शर्मा
मृणाल विचारों में डूबी ही थी कि अनय ने कहा, ‘मैं आप का नाम जान सकता हूं, मैम.’
‘जी, मृणाल, मृणाल जोशी नाम है मेरा.’
‘वैरी नाइस, आप के जितना नाम भी खूबसूरत है आप का.’
‘ओह, थैंक्यू सर’ तो आप को फ्लर्ट करना भी आता है? मैं तो सोचती थी आप बहुत गंभीर और संजीदा व्यक्ति होंगे. पर आप तो...’ और बीच में रुक गई.
‘पर आप तो कुछ लंफगे टाइप के हो, फ्लर्ट करते हो,’ कहते हुए अनय ने मृणाल के वाक्य को पूरा करने की कोशिश की.
‘नहींनहीं सर, मेरा वह मतलब नहीं था.’ दोनों जोर से हंसने लगे.
‘सर, सच में मैं आप को बता नहीं सकती मुझे आप से मिल कर कितना अच्छा लग रहा है.’
‘पर मुझ से ज्यादा नहीं,’ अनय ने कहा और एक बार फिर दोनों की हंसी ठहाकों में बदल गई.
‘सर, आप फिर फ्लर्ट कर रहे हैं.’
‘नहीं, मैं फ्लर्ट नहीं कर रहा, मृणाल.’ और कुछ सैकंड के लिए रुक कर अनय बोला, ‘मैं आप का नाम ले सकता हूं.’
‘जी, बिलकुल.’
‘मुझे अच्छा लगेगा अगर आप भी मुझे अनय कहेंगी.’
‘जी, मैं कोशिश करूंगी.’ अनय ने भी सिर हिला कर उस की बात को स्वीकार किया. क्योंकि अनय जानता था कि किसी भद्र महिला का एकदम से किसी अनजान व्यक्ति को नाम से बुलाना आसान नहीं होता.
बातें करतेकरते दोनों एक रैस्तरां में पहुंच गए और लंच और्डर कर दिया. जब तक लंच आता, मृणाल ने अनय से पूछा, ‘सर, आप को आप के लिखे उपन्यास में सब से पसंदीदा कौन सा है?’
‘जो आप को,’ अनय ने बिना कुछ सोचे तपाक से जवाब दिया.