उन की बातें दुनिया के झमेले से शुरू हो कर अकसर कालेज की कभी न लौटने वाली सुनहरी यादों पर खत्म हो जाती थीं. मेहंदी के रंग की तरह वक्त के साथ और भी गहरी हो चली थी उन की दोस्ती. हर सुखदुख दोनों साझा करती थीं.
अपने रिटायर्ड कर्नल पति के साथ पम्मी जिंदगी को जिंदादिली से जीने में यकीन रखती थी. इस उम्र में भी जवान दिखने की हसरत बरकरार थी उस की. बच्चों की जिम्मेदारियों से फारिग हो चुके थे वे लोेग. कर्नल साहब और पम्मी मौके तलाशते थे लोगों से मिलनेमिलाने के.
अगले ही रविवार की शाम एक पार्टी रखी थी दोनों ने अपने घर पर अपनी शादी की एक और शानदार सालगिरह का जश्न मनाने के लिए. कर्नल साहब के फौजी मित्र और पम्मी की कुछ खास सहेलियां, सब वही लोग थे जो ढलती उम्र में हमजोलियों के साथ हंसीमजाक के पल बिता कर अकेलेपन का बोझ कुछ कम कर लेना चाहते थे.
कालेज की लाइब्रेरी से मोटीमोटी किताबें ला कर मधु सप्ताहांत की छुट्टियां बिता लेती थी. कोई खास जानपहचान वाला था नहीं जहां उठानाबैठना होता. पति के जाने के बाद मधु की दुनिया बहुत छोटी हो चली थी.
जिन बच्चों की परवरिश में जवानी गुजर गई, वे अब बुढ़ापे के अकेलेपन में साथ नहीं थे. इस में उन का ही क्या दोष था, यह तो जमाने का चलन है.
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विकास के विदेश में नौकरी का सपना अकेले विकास का ही नहीं, मधु का भी था. बेटे की कामयाबी मधु के माथे का गौरव बनी थी. अपने दोनों बच्चों का भविष्य संवारने में मधु ने क्याक्या त्याग नहीं किए थे. अकेली विधवा औरत समाज में दामन बचाती चली, कभी दोनों को पिता की कमी महसूस नहीं होने दी.