दोनों बालकनी में बैठ कर शाम की चाय पी रही थीं. पम्मी ऐसी दोस्त थी जो मधु को जिंदगी खुल कर जीने के लिए प्रेरित करती थी.
‘‘सच कहूं, मुझे यकीन नहीं होता कि किसी से खुल कर बातें करने से दिमागी तौर पर इतना सुकून मिलता है. एक तू है जो समझती थी और अब सुरेंदर भी मुझे समझने लगे हैं.’’
मधु खुश थी और पम्मी यह देख कर खुश थी.
उसी शाम बेटे विकास ने फोन कर के बताया कि वह कुछ दिनों के लिए सपरिवार इंडिया आ रहा है. पिछले 3 सालों से हर बार वह मधु को अपने आने की सूचना देता, मगर कभी अपने काम या किसी और वजह से आना नहीं हो पा रहा था. बेटेबहू और दोनों नातिनों को देखने के लिए मधु का दिल कब से तरस रहा था, वह बेसब्री से दिन गिनने लगी.
बेटे के परिवार के आने से 2 दिनों पहले मधु का जन्मदिन आया. वह अपना जन्मदिन कभी नहीं मनाती थी. मगर उस के लाख मना करने के बावजूद डिनर का प्रोग्राम बन गया और सुरेंदर ने 2 लोगों के लिए टेबल बुक करा दी रैस्तरां में. दोनों जब शाम को मिले तो सुरेंदर बत्रा मधु को देखते ही रह गए. गुलाबी लहरिया साड़ी में मेकअप के साथ मधु का रूप आज कुछ अलग था. उस ने जब उन्हें इस तरह निहारते देखा तो शर्म की लाली उस के गालों पर दौड़ गई.
उस के चहेते येलो और्किड का गुलदस्ता उसे थमाते सुरेंदर मधु पर दिल हार बैठे थे. मधु कोई दूध पीती बच्ची नहीं थी जो उन आंखों में अपने लिए आकर्षण को न समझ पाती.