‘‘अरे तुम? तुम तो बिराज हो.’’
‘‘हां मैम, मैं बिराज ही हूं. छुट्टी ले कर गांव गया था. मेरे पिताजी का आकस्मिक निधन हो गया. मुझे
गांव में ही पता चला था कि आप यहां आई हैं. आज से जौइन किया है, सुना आप ने बुलाया है.’’
अदिति की आंखों में जैसे अनजाना सा स्रोत आ कर गुजर गया.
बिराज ने अदिति की मां के चरणस्पर्श किए. गुलाबी देवी ने उसे गले
से लगा कर कहा, ‘‘पता नहीं लाल तुम्हारी क्या जाति है... पांव मत पड़ो.’’
‘‘यह क्या मां. आप भी... हूं तो मैं ब्राह्मण का बेटा ही, लेकिन मेरे पिताजी हमेशा जातिभेद के विरुद्ध आवाज उठाते रहे. अभी तो जाति नामक किसी चीज को देख नहीं पाया. बस सुनता ही हूं कि मैं फलाना जाति... ‘मैं’ और ‘जाति’ जो सिर्फ लोगों की मानसिकता में हैं और इस भ्रम के लिए कितने ही खूनी संघर्ष हो जाते हैं.’’
अदिति विभोर सी बिराज को देखती रही कि वह तो उसी की भाषा कहता है. अदिति ने नाश्ते के बीच बिराज को पूरी गाइडलाइन दे दी.
1-1 नेता, मंत्री के पीछे गैरजरूरी तरीके से 10-10 गनमैन की पोस्टिंग थी. सरकारी गाडि़यां उन की घरेलू खिदमत में उन के रुतबे का सिंबल बनी उन के बंगले के बाहर खड़ी रहतीं. दूसरी ओर कितने ही जरूरी मसलों और पब्लिक हित की बातों में इन गनमैन और गाडि़यों की जरूरत पड़ती और तब इन की कमी के कारण प्रशासनिक तंत्र को लीपापोती करनी पड़ती.
अदिति ने 1-1 कर इन बिलों में हाथ डालने का काम जारी रखा. वह फिर से तैयार थी सर्पदंश का विष ?ोलने को. राजनीतिक रूप से काफी सशक्त हो चुका हिमांशु अब पैसे की ताकत और अपराधी शक्तियों के बूते कई राजनीतिक माफियाओं से लामबंद हो कर देश की आर्थिक और कार्यकारी तंत्र को जर्जर बनाने में पूरी मुस्तैदी से जुटा था. मगर पैसा और अहंकार की तुष्टि का रास्ता निस्संदेह अन्याय और असत्य की सुरंगों से हो कर ही गुजरता है और ऐसे लोग जल्दी एकत्र भी होते हैं.