अदिति की स्वयं की पहचान रहते हुए भी उसे जाति और जन्मसूत्र के कू्रर पंजों तले नाक रगड़ना होगा.
इस वक्त अदिति औफिस में थी और अदिति की मां पर यह बड़ी जिम्मेदारी आन पड़ी थी.
इतने बड़े महामहिम उच्चकुल जातक ने अदिति से ब्याह के लिए उस की जाति पहचान पूछी है. गुलाबी कैसे अपनी पहचान को कालिख से बेटी का भविष्य नष्ट करे. उसे अपनी बेटी को समाज की सामान्य धारा से जोड़ना है, एक निश्चिंत जिंदगी देनी है, वह गुलाबी सा न रह जाए समाज की मुख्य धारा से कटी हुई.
काफी कुछ सोच कर गुलाबी ने हिमांशु से कहा कि गुलाबी दरअसल अदिति की मां नहीं है. उस के मातापिता का कार ऐक्सीडैंट में देहांत हो गया था. वे क्षत्रिय थे. गुलाबी तो उन के घर आया थी, उसी ने फिर अदिति को पाला.
हिमांशु कुछ संतुष्ट हुए. वे अदिति को पाने के लिए बेताब थे. इतना सुन कर ही उन्होंने दिल को तसल्ली दे दी.
गुलाबी ने कह तो दिया, लेकिन वह अपनी बेटी को जानती है कि उसे मनाना इतना आसान न होगा.
‘‘मान जाओ, मेरी प्यारी बिट्टो. मैं तुम्हें एक सामाजिक आधार देना चाहती हूं जो मेरे पास कभी नहीं रहा. मेरी पहचान तुम्हारे परिचय को काला न करे मेरी बच्ची.’’
‘‘मां, झूठ से सम्मान हासिल करने का भ्रम मैं कभी नहीं पाल सकती. दूसरे, मुझे झूठ बोलने की जरूरत ही क्या है जब मैं मानव समाज को खंडितकरने वाली जाति के दुराग्रह को सिरे से नकारती हूं. मेरे लिए कोई ऊंच नहीं, नीच नहीं. जीवन, व्यवस्था और सामाजिक संबंध व्यक्ति के विचारों और व्यवहार से चलते हैं, जाति से तो विभेद होता है मिलन नहीं.’’