जब राम्या यहां आई थी तो बहुत सहमी सी थी. बरसों से झेली परेशानियां और जद्दोजहद उस के चेहरे से ही नहीं, उस की आंखों से भी साफ झलक रही थी. 21-22 साल की होने के बावजूद उसे देख लगता था मानो परिपक्वता के कितने बसंत पार कर चुकी है. एक खौफ सदा उस से लिपटा रहता था, कोई उस के पास से गुजर भी जाए तो कांपने लगती थी. किसी का भी स्पर्श उसे डरा जाता और वह एक कोने में दुबक कर बैठ जाती. किसी से घुलनामिलना तो दूर उसे बात तक करना पसंद नहीं था. न हंसती थी, न मुसकराती थी, बस चेहरे पर सदा एक तटस्थता छाई रहती मानो बेजान गुड़िया हो... मन के अंदर खालीपन हो तो खुशी किसी भी झिर्री से झांक तक नहीं पाती है.

बहुत समय लगा उन्हें उसे यह एहसास कराने में कि वह यहां महफूज है और किसी भी तरह का अन्याय या जोरजबरदस्ती उस के साथ नहीं होगी. वह एक सुरक्षित जिंदगी यहां जी सकती है. बस एक बार काम में मन लगाने की बात है, फिर बीते दिनों के घाव अपनेआप ही भरने लगेंगे. धीरेधीरे उन का प्यार और आश्वासन पा कर वह थोड़ीथोड़ी पिघलने लगी थी, कुछ शब्दों में भाव प्रकट करती, पर सिवाय उन के वह और किसी से बात करने से अभी भी डरती थी. खासकर अगर कोई पुरुष हो तो वह उन के पीछे आ कर छुप जाती थी. उन्हें इस बात की तसल्ली थी कि वह उन पर भरोसा करने लगी है और इस तरह बरसों से उलझी उस की जिंदगी की गांठों को खोलने में मदद मिलेगी.

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