कानपुर सैंट्रल रेलवे स्टेशन के भीड़ भरे प्लेटफार्म से उतर कर जैसे ही मैं सड़क पर आया, तभी मुझे पता चला कि किसी जेबकतरे ने मेरी पैंट की पिछली जेब काट कर उस में से पूरे एक हजार रुपए गायब कर दिए थे. कमीज की जेब में बची 2-4 रुपए की रेजगारी ही अब मेरी कुल जमापूंजी थी.
मुझे शहर में अपना जरूरी काम पूरा करने और वापस लौटने के लिए रुपयों की सख्त जरूरत थी. पूरे पैसे न होने के चलते मैं अपना काम निबटाना तो दूर ट्रेन का वापसी टिकट भी कैसे ले सकूंगा, यह सोच कर बुरी तरह परेशान हो गया.
इस अनजान शहर में मेरा कोई जानने वाला भी नहीं था, जिस से मैं कुछ रुपए उधार ले कर अपना काम चला सकूं.
हाथ में अपना सूटकेस थामे मैं टहलते हुए सड़क पर यों ही चला जा रहा था. शाम के साढ़े 5 बजने को थे. सर्दी का मौसम था. ऐसे सर्द भरे मौसम में भी मेरे माथे पर पसीना चुहचुहा आया था.
मुझे बड़ी जोरों की भूख लग आई थी. मैं ने सड़क के किनारे एक चाय की दुकान से एक कप चाय पी कर भूख से कुछ राहत महसूस की, फिर अपना सूटकेस उठा कर सड़क पर आगे चलने के लिए जैसे ही तैयार हुआ कि तकरीबन 9 साल का एक लड़का मेरे पास आया और बोला, ‘‘अंकलजी, आप को मेरी मां बुला रही हैं. चलिए...’’
इतना कहते हुए वह लड़का मेरे बाएं हाथ की उंगली अपने कोमल हाथों से पकड़ कर खींचने लगा. मैं उस लड़के को अपलक देखते हुए पहचानने की कोशिश करने लगा, पर मेरी कोशिश बेकार साबित हुई. मैं उस लड़के को बिलकुल भी नहीं पहचान सका था.