घंटी की आवाज सुन कर अलका के दरवाजा खोलते ही नवागुंतक ने कहा, ‘‘नमस्कार, आप मुझे नहीं जानतीं, मेरा नाम पूनम है. मैं इसी अपार्टमैंट में रहती हूं.’’
‘‘नमस्कार, मैं अलका, आइए,’’ कहते हुए अलका ने पूनम को अंदर आने का निमंत्रण दिया.
‘‘फिर कभी, आज जरा जल्दी में हूं. कल गुरुपूर्णिमा है, गुरुजी के आश्रम से गुरुजी के अनुयाई आए हैं. उन के सान्निध्य से लाभ उठाने के लिए गुरुपूर्णिमा के अवसर पर हम ने घर में सत्संग का आयोजन किया है. उस के बाद महाप्रसाद की भी व्यवस्था है. आप सपरिवार आइएगा,’’ पूनम ने अलका से कहा.
‘‘सत्संग...’’ अलका ने वाक्य अधूरा छोड़ते हुए कहा.
‘‘हमारी गुरुमाता हैं, उन का मुंबई में आश्रम है. वे तो देशविदेश धर्म के प्रचारप्रसार के लिए जाती रहती हैं, लेकिन उन के अनुशासित शिष्य उन के काम को आगे बढ़ाते रहते हैं. हम उन के प्रवचन औडियो, वीडियो सीडी के जरिए दिखाते हैं. हम चाहते हैं ज्यादा से ज्यादा लोग गुरुमाई के विचारों को आत्मसात कर धर्मकर्म को अपनाएं. इस से उन के जीवन में सुख व शांति का प्रवाह होने के साथ उन का जीवन सफल होगा. यही नहीं दूसरों को भी उन के विचारों से अवगत करा कर उन के जीवन को भी सफल बनाने में सहयोग दें.’’
अलका इस अपार्टमैंट में कुछ दिनों पहले आई थी. सो, अभी तक उस का किसी से ज्यादा परिचय नहीं हुआ था. पूनम के निमंत्रण पर सोच में पड़ गई. वह कभी सत्संग में नहीं गई थी. उस ने अपनी सासुमां को टीवी पर कई बाबाओं का सत्संग सुनते देखा था. सब की एक ही बातें. एक ही चालें. अपनी करनी के चलते जब आसाराम जेल गए तो सासुमां को तो विश्वास ही नहीं हो रहा था. बारबार वे यही कहती रहीं कि उन को फंसाया गया है. कई बार उस ने उन्हें सचाई बतानी चाही, तो उन्होंने उसे धर्म, कर्म से विमुख की उपाधि से विभूषित कर उस का मुंह बंद कर दिया था. नतीजा यह हुआ कि वह उन की बातें चुपचाप सुनती रहती थी, लेकिन कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं करती थी. वैसे भी, उस का मानना था जिस ने अपने मनमस्तिष्क के दरवाजे बंद कर रखे हैं, उस को समझा पाना बेहद कठिन है.