संदीप जितने समय तक कालेज कम्पाउंड में रहता है, महेश उसके आगे-पीछे घूमता रहता है. लेकिन जैसे ही वह कालेज से बाहर जाता है महेश के मुंह से उसके लिए गालियां ही गालियां निकलती हैं. लगभग यही हाल ऐक्टिंग स्कूल की उन तीन लड़कियों की है. शीला, मीता और रोजी. तीनों की तीनों क्लास के एक लड़के राकेश ग्रोवर के इर्द गिर्द मंडराती रहती हैं. राकेश जिसको भी इशारा कर दे, वह उसकी मर्सिडीज की आगे वाली सीट में बैठने को तैयार रहती है. लेकिन इन तीनों से कोई ईमानदारी से पूछे तो इन तीनों में से राकेश को प्यार कोई नहीं करता. चाहे महेश हो या शीला, मीता और रोजी. ये सभी संदीप या राकेश के आगे-पीछे इसलिए घूमती हैं क्योंकि राकेश और संदीप बड़े घरों के बेटे हैं. इनके आगे-पीछे घूमने का मतलब खाना-पीना और मस्त रहना है. एक तरह से घूमने के ये संबंध इसी मस्ती के एवज के संबंध हैं.
लेकिन याद रखिए ये एवजी संबंध न तो लंबे समय तक चलते हैं और न ही इनमें कोई आत्मीयता होती है. दरअसल जीवन के तमाम रंग होते हैं. सुबह सोकर उठने से लेकर रात में बिस्तर पहुंचने तक न जाने कितने मोड़ आते हैं. न जाने कितने रंगों से गुजरना पड़ता है. कई बार जिंदगी चलाने के लिए कई किस्म के गणितीय संबंधों को भी निभाना पड़ता है जैसे स्वागत बाला की नौकरी के लिए होठों पर मुस्कुराहट को चिपकानी पड़ती है. ठीक उसी तरह घर और दफ्तर में कई औपचारिक रिश्तों की चादर ओढ़नी पड़ती है. ऐसा करने में कोई हर्ज नहीं है. समस्या तब आती है जब हम सब कुछ जानते-समझते हुए भी गणितीय संबंधों से संवेदनशीलता या स्थायित्व की उम्मीद करने लगते हैं.
याद रखें संबंध हमेशा आपके अपने स्वभाव के मुताबिक ही बनते हैं. इसलिए यदि आप इस मुगालते में हैं कि फलां से आपका स्वभाव मेल नहीं खाता इसके बावजूद भी वह आपका घनिष्ठ दोस्त हो सकता है या कि आपके मौके पर वह काम आ सकता है तो ऐसी अपेक्षा महज गलतफहमी भर ही होगी. आप किसी से महज फायदे के लिए कोई झूठी दोस्ती रचकर उसे संवेदनशील संबंधों का लबादा नहीं पहना सकते. दफ्तरों और कालेजों में इस तरह के गणितीय संबंध सबसे ज्यादा बनते हैं. दरअसल दफ्तरों में लोग झूठ की एक भरी-पूरी जिंदगी जिया करते हैं. आमतौर पर दफ्तरों में पुरूष कर्मचारी खासकर अपनी महिला सहकर्मियों के साथ जिस तरह से पेश आते हैं, वह उनका मूल स्वभाव नहीं होता. घरों में उनका असली रूप और स्वभाव कुछ अलग ही होता है. दफ्तरों में ज्यादा पुरूष अपनी महिला सहकर्मियों के साथ इस तरह से पेश आते हैं जैसे उनके जैसे संवेदनशील और स्त्रियों का सम्मान करने वाला आदमी दुनिया में कोई दूसरा है ही नहीं. वही पुरूष घरों में अपनी पत्नियों से इस तरह पेश आते हैं जैसे संवेदना से उनका दूर-दूर तक का कोई नाता ही न हो.
महिलाएं भी ठीक इसी तरह का व्यवहार करती हैं. दफ्तरों में वह जितनी मधुर मिश्री होती हैं, घरों में उतनी ही कर्कशा. दरअसल दफ्तरों में औरतें और पुरूष तथा कालेजों में लड़के-लड़कियां एक-दूसरे के सामने जो छवि प्रस्तुत किया करते हैं, वह नकली छवि होती है. वह तात्कालिक रिश्तों का महज गणितीय आयाम भर होता है. ऐसे रिश्ते थोड़ी ही देर या कि घरों से बाहर तक ही चल सकते हैं. क्योंकि ऐसे रिश्तों में असलियत कुछ नहीं होती. ऐसे रिश्ते महज अपने इंटरनेट के लिए होते हैं. इसलिए ऐसे रिश्तों के आधार पर कोई दीर्घकालिक फैसला नहीं लेना चाहिए.
कुछ साल पहले मुंबई की एक एजेंसी ने सर्वे कराया कि जो टाप एक्जीक्यूटिव हैं, वे अपनी महिला पर्सनल सेक्रेटरी को अपनी पत्नी के बारे में क्या बताते हैं और किस तरह बताते हैं. सर्वेक्षण में पाया गया कि 70 प्रतिशत से ज्यादा एक्जीक्यूटिव अपनी सेक्रेटरी से यही प्रदर्शित करते हैं कि उनके अपनी पत्नियों से बहुत खराब रिश्ते हैं. वे उनसे असंतुष्ट हैं. कई तो अपनी सेक्रेटरी की नजर में बेचारे बनने के लिए यह पुराना हथकंडा अपनाने से भी बाज नहीं आते कि उनकी पत्नी अक्सर बीमार रहती है. जबकि ऐसा कुछ भी नहीं होता. जो लोग अपने दफ्तरों में यह साबित करने की कोशिश करते हैं कि वे अपनी पत्नी से असंतुष्ट हैं, अकसर होता उल्टा है. ऐसे लोग अपनी पत्नियों से संतुष्ट होते हैं. इनकी पत्नियां दबंग नहीं होतीं और न ही बेचारी वह अक्सर बीमार रहती हैं. दरअसल उनको इस तरह पेश करने के पीछे अपने निजी स्वार्थ होते हैं. स्वार्थ भी कोई बहुत स्थायी और व्यापक नहीं होते. कई लोग तो महज इसलिए ये सब बातें करते हैं कि उन्हें औरतों की हमदर्दी मिल जाए.
मगर सिर्फ पुरूष ही ऐसा नहीं करते औरतें भी ऐसा करती हैं. तमाम औरतें अपने दफ्तरों में कुछ खास पुरूषों की सहानुभूति हासिल करने के लिए अपने आपको यूं प्रदर्शित करती हैं जैसे उन्हें किसी जाहिल, अत्याचारी के साथ बांध दिया गया है जिसमें न तो कोई संवेदना है और न ही सुरूर या सलीका. ये सब झूठी और बनावटी बातें होती हैं. इनके जरिए महज कुछ व्यक्तिगत किस्म के फायदे लिए जा सकते हैं. बस इसके अलावा इनकी कुछ और उपयोगिता नहीं होती. इसलिए ऐसे गणितीय संबंधों से बचें.