9वर्षीय मिताली की जोरजोर से रोने की आवाज सुन कर वैशालीजी से रहा न गया. वे दौड़ कर कमरे में गईं, तो देखा उन की बहू सुलेखा मिताली को पीट रही थी. वैशालीजी ने पूछा तो पता चला कि मिताली कई दिनों से पाश्ता खाना चाह रही है, मगर सुलेखा रोज उसे नाश्ते में या तो 1 कटोरी उपमा या फिर दलिया दे रही है, जिस से मिताली पूरी तरह ऊब चुकी है. खाने में भी सुलेखा उसे रोज सिर्फ एक सब्जी जो कभी लौकी, कभी आलूपालक या फिर परवल की होती और रूखी रोटी देती.
सुलेखा हाल ही में अपने पीहर जा कर आई है. तभी से उस ने मिताली की डाइट में यह बदलाव किया है. वहां उसे एक पड़ोसिन से पता चला कि बच्चों को नापतोल कर, कैलोरी का हिसाब देख कर ही खिलाना चाहिए. बस तब से सुलेखा पर भी यह सनक सवार हो गई थी.
वैशालीजी को यह सब अजीब तो बहुत लगा पर कलह के डर से वे चुप रहीं. महीने भर तक ऐसा ही चलता रहा. तभी अचानक एक दिन मिताली बेहोश हो गई. उसे अस्पताल में भरती करवाना पड़ा. मिताली बेहद कमजोर हो चुकी थी. पूछताछ से पता चला कि रोज एकजैसा खाना देने के कारण मिताली को उलटियां आने लगी थीं. मम्मी के डर से कई बार खाना छिपा कर बाहर फेंक देती थी, इसीलिए वह कुपोषण का शिकार हो गई और उस की यह हालत हो गई.
अनावश्यक डाइट कंट्रोल
सुलेखा जैसी मानसिकता आजकल बहुत सी मांओं की मिलेगी. अपने बच्चों की सेहत के प्रति जरूरत से ज्यादा प्रोटैक्टिव नई पीढ़ी की मांओं का रवैया देख कर चिकित्सक और डाइटीशियन भी हैरान हैं.