लेखक -केशी गुप्ता
दिल्ली के गाजीपुर व भलस्वा लैंडफिल के कूड़े के पहाड़ और दिल्ली की हालत देख कर सरकार द्वारा चलाए जाने वाले स्वच्छ भारत अभियान पर कई सवाल खड़े होते हैं. कुछ वीआईपी इलाकों को छोड़ कर दिल्ली के अधिकतर इलाके गंदगी से भरे हैं. गाजीपुर और भलस्वा का कूड़े का पहाड़ चिंता का विषय है. आखिर दिल्ली या अन्य किसी भी शहर के इलाकों से इकट्ठा किया जाने वाला कूड़ा कहां फेंका जाता है? क्या किया जाता है इकट्ठे हुए कूड़े का? स्वच्छता अभियान के तहत एमसीडी द्वारा दिल्ली निवासियों को गीला और सूखा कूड़ा अलगअलग करने की हिदायत दी गई है. मगर एमसीडी का ट्रक एक ही आता है. प्लास्टिक थैलियों का इस्तेमाल रुका नहीं. आज भी कूड़े के लिए आम जनता प्लास्टिक की थैलियां ही इस्तेमाल कर रही है.
सिर्फ आंकड़ों का खेल
एमसीडी कूड़े की समस्या से जू झने में समर्थ नहीं है. इस में कार्य करने वाले कर्मचारी अपने ही कार्यालय से नाखुश नजर आते हैं. कर्मचारियों तथा उपकरणों की कमी बनी रहती है. कूड़े की समस्या पर राजनीतिक खेल खेला जाता है. न तो एमसीडी के कर्मचारियों की कोई वरदी है, न ही गंदगी और बीमारियों से बचने के लिए मास्क या दस्तानों की व्यवस्था. क्या सफाई कर्मचारी इंसान नहीं? आधुनिकीकरण के बावजूद आज भी गटर आदि की सफाई के लिए आधुनिक यंत्र नहीं हैं. आज भी उन में सफाई कर्मचारियों को ही उतरना पड़ता है. क्यों नहीं सरकार एमसीडी कार्यालय और उस में काम करने वाले कर्मचारियों को बेहतर काम करने के लिए प्रशिक्षित करती है? क्या सिर्फ वीआईपी इलाकों की साफसफाई मात्र ही सफाई अभियान का हिस्सा है? सफाई अभियान पर खर्च किया जाने वाला पैसा कहां खर्च किया जाता है? क्या सब आंकड़ों का खेल मात्र है?