सचमुच पुरुष को बदलते देर नहीं लगती. यह वही सुधीर था जिसे मैं ने हर हाल में स्वीकारा. चाहती तो शादी से इनकार कर सकती थी पर मेरे अंतर्मन को गवारा न था. इंगेजमैंट के 1 महीने बाद सुधीर का पैर एक ऐक्सिडैंट में कट गया. भावी ससुर ने संदेश भिजवाया कि क्या मैं सुधीर से इस स्थिति में भी शादी करने के लिए तैयार हूं?
पापा दुविधा में थे. लड़के की सरकारी नौकरी थी. देखनेसुनने में खूबसूरत था. अब नियति को क्या कहें? पैर कटने को लिखा था, सो कट गया. फिर भी मुझ पर उन्होंने जोर नहीं डाला. मुझे अपने तरीके से फैसला लेने की छूट दे रखी थी. दुविधा में तो मैं भी थी. जिस से मेरी शादी होनी थी कल तक तो वह ठीक था. आज उस में ऐब आ गया तो क्या उस का साथ छोड़ना उचित होगा? कल मुझ में भी शादी के बाद कोई ऐब आ जाए और सुधीर मुझे छोड़ दे तब?
मैं दुविधा से उबरी और मन को पक्का कर सुधीर से शादी के लिए हां कर दी. शादी के कुछ साल आराम से कटे. सुधीर ने कृत्रिम पैर लगवा लिया था. इस तरह वह कहीं भी आनेजाने में समर्थ हो गया. मुझे अच्छा लगा कि चलो, सुधीर के मन से हीनभावना निकल जाएगी कि वह अक्षम हैं.
5 साल गुजर गए. काफी इलाज के बाद भी मैं मां न बन सकी तो मैं गहरे अवसाद में डूब गई. कहने को भले ही सुधीर ने कह दिया कि उसे बाप न बन पाने का जरा भी मलाल नहीं है लेकिन मैं ने उस के चेहरे पर उस पीड़ा का एहसास किया जो बातोंबातों में अकसर उभर कर सामने आ जाती. एक दिन मुझ से रहा न गया, कह बैठी, ‘‘अगर एतराज न हो तो मैं एक सलाह दूं.’’