बाद मैं मैं ने खुद दुकानदार से बात की तो वह हंसने लगा और बोला, ‘बहिनजी, इतनी बड़ी मेरी दुकान है, मैं पुरानी साड़ी नहीं बेचता हूं.’ मुझे सब समझ आ गया कि साड़ी जिज्जी ने ही बदल दी थी. तभी दोबारा दुकान जाने को तैयार न हुई,’’ संध्या गुस्से से बोली.
‘‘हां, तेरी शादी की साड़ी की बात तो मुझे भी अच्छे से याद है. मैं भी हैरान हो गईर् थी कि जिज्जी शौपिंग में कैसे ठग गई.’’ किरण हंसने लगी, ‘‘तूने गलती की, जब पता चल ही गया था तो साड़ी ला कर जिज्जी के मुंह पर दे मारती.’’
‘‘हम तो शुरू से लिहाज ही करते रह गए. उसी का नतीजा है कि आज भी हमारी छाती में मूंग दलने को बैठी है,’’ संध्या ने मुंह बनाया.
‘‘मूंग से याद आया, कल के लिए उड़द भिगोनी हैं अच्छा चाची, कल तेरहवीं के भोज में जरूर आना,’’ कह कर दोनों भीतर चली गई.
दिन का भोज खत्म होते ही बेटों ने तुरंत टैंट समेट दिया, लोगों को हाथ जोड़ कर विदा कर दिया. फिर से इकट्ठे हो कर सभी हिसाब लगाने में जुट गए. कितना खर्चा हो गया और कितना अभी वार्षिक श्राद्ध में करना बाकी है. सोमनाथ कहने लगे, ‘‘2 बार मैं ने मां को हौस्पिटल में भरती किया था, उस हिसाब को भी इस में जोड़ो.’’
‘‘यह हिसाब छोड़ो, पहले जो जमीन बची है, उसे बेच कर मेरा हिस्सा अलग करो.’’
‘‘जमीन का हिसाब बाद में, अभी इन 13 दिनों का हिसाब पहले करो. सब से ज्यादा मेरे रुपए खर्च हुए हैं.’’
‘‘लाओ मुझे दो, मैं सारा हिसाब लिख कर बताता हूं,’’ दीनानाथ हाथ में कागजपैन ले कर खड़े हो गए.