मेरे पीछे खड़ी कविता शायद उसे दिखी नहीं. पर मुझे प्रमोद के पीछे आती एक दुबलीपतली, कंधे तक कटे बालों वाली सांवली, लेकिन अच्छे नैननक्श वाली लड़की दिख ही गई. मैं समझ गई कि यही प्रभा है.
प्रमोद के कुछ कहने से पहले मैं फट पड़ी, ‘‘तुम्हें कुछ खयाल भी है कि तुम्हारा घरबार है, पत्नी है, मां है, और...’’
‘‘मुझे सब पता है, मां. मैं भूलना चाहता हूं तो भी आप भूलने कहां देती हैं? आप जरा धीरे बोलिए, यह अस्पताल है,’’ उस के स्वर में कड़वाहट थी. वह पहली बार मुझ से इस ढंग से बोल रहा था.
अचानक विभा बाहर दौड़ती हुई आई. ‘‘दीदी, जल्दी अंदर चलो. मां को होश आ गया है.’’
प्रभा और प्रमोद तेजी से अंदर भागे. मेरे कदम भी उसी दिशा में बढ़ गए. कविता भी मेरे पीछे चली आई.
कमरे में एक कृशकाय महिला बड़े प्यार से प्रमोद का हाथ थामे बैठी थी. मुझे देख कर प्रमोद ने कुछ हड़बड़ाते हुए कहा, ‘‘आप इतने दिनों से मेरी मां से मिलने को कह रही थीं. देखिए, वे आप से मिलने आई हैं.’’
मुझे देख कर उस महिला की आंखों में आंसू उभर आए. वह हौले से बोली, ‘‘बहनजी, मैं मरने से पहले आप से एक बार मिलना चाहती थी. आप का बेटा प्रमोद मेरे लिए देवदूत जैसा है. पता नहीं, प्रभा ने ऐसा क्या कर्म किए हैं, जो उसे प्रमोद जैसा...’’ उन की आवाज आंसुओं में धुल गई.
मैं हतप्रभ सी खड़ी रही. अचानक प्रभा की मां का ध्यान कविता की ओर गया, ‘‘यह कौन है, बेटा?’’
प्रमोद ने तुरंत धीरे से कह डाला, ‘‘मेरी मौसेरी बहन है, मां के साथ आई है.’’