विमान से उतरने के बाद भी डाक्टर शेखर को लग रहा था कि वह अभी भी हवा में उड़ रहा है. लगे भी क्यों न. एक तो करीब 3 महीनों बाद घर लौटने की खुशी, फिर इस दौरान विदेश में मिला मानसम्मान और चलते समय विश्वविख्यात लंदन के किंग्स मैडिकल कालेज में हर वर्ष कुछ महीनों के लिए बतौर विजिटिंग प्रोफैसर आने का अनुबंध. यह खबर सुन कर लतिका तो खुश होगी ही, राशि भी खुशी से नाचने लगेगी. मगर बाहर खड़े लोगों में उसे सिर्फ लतिका ही नजर आई. उस ने बेचैनी से चारों ओर देखा.
‘‘राशि को ढूंढ़ रहे हो न शेखर? मगर मैं उसे जानबूझ कर नहीं लाई, क्योंकि मुझे अकेले में तुम्हें एक खुशखबरी सुनानी है,’’ लतिका चहकी.
‘‘मैं भी तो राशि को खुशखबरी सुनाने को ही ढूंढ़ रहा हूं. खैर जहां इतना इंतजार किया है कुछ देर और सही... तब तक तुम्हारी खबर सुन लेते हैं.’’
‘‘गाड़ी में बैठने के बाद.’’
‘‘वहां ड्राइवर की मौजूदगी में अकेलापन कहां रहेगा?’’ शेखर शरारत से हंसा.
‘‘मैं ड्राइवर को भी नहीं लाई,’’ लतिका ने ट्रौली पार्किंग की ओर मोड़ते हुए कहा.
‘‘मैं समझ गया तुम्हारी इतनी पोशीदा खुशखबरी क्या है,’’ शेखर ने गाड़ी में बैठते ही उसे अपनी ओर खींचते हुए कहा, ‘‘तुम मां बनने वाली हो.’’
‘‘घर पहुंचने तक तो सब्र करो... वैसे तुम्हारा अंदाजा सही है. मैं फिर मां बनने वाली हूं और इस मां को सास भी कहते हैं.’’
‘‘यानी तुम ने मेरी गैरमौजूदगी का फायदा उठा कर मेरी हार्ड कोर प्रोफैशनल बेटी का शादी करने को ब्रेन वाश कर ही दिया.’’
‘‘मैं ने तो बस उसे इतना आश्वासन दिया है कि जिसे उस ने मन में बसाया है उसे तुम सिरआंखों पर बैठाओगे, क्योंकि प्रणव तुम्हारे अभिन्न मित्र अभिनव का बेटा है.’’