‘‘सौरी शेखर, तुम्हें डिस्टर्ब किया.’’
‘‘अरे ऋतु... माफ करना तुम्हें रिसीव करने नहीं आ सका,’’ उस ने आवाज पहचान कर कहा.
‘‘मैं तुम्हारी दुविधा समझ रही हूं शेखर इसीलिए मैं ने तुम्हें लतिका और राशि के घर पहुंचने से पहले फोन किया है. मेरा तुम से अकेले में मिलना बहुत जरूरी है. प्रणव के औफिस जाने के बाद मैं तुम्हें फोन करूंगी.’’
ऋतु ने रिसीवर रखा ही था कि बाहर गाड़ी के रुकने की आवाज आई. शेखर बाहर आ गया.
‘‘सास कैसी लगी राशि?’’
‘‘बहुत थकी हुई और कुछ हद तक डरी हुई,’’ राशि हंसी, ‘‘प्रणव बता रहा था कि उन्होंने पहली बार इतना लंबा सफर अकेले किया है, महज मुझे देखने के लिए.’’
‘‘मगर थकान और घबराहट की वजह से ठीक से देख भी नहीं सकीं,’’ शेखर हंसा.
‘‘बहुत अच्छी तरह से देखा पापा और मम्मी से फोन नंबर भी लिया कि सुबह आप का धन्यवाद करेंगी कि आप ने उन के बेटे को मेरे लिए पसंद किया है,’’ राशि इतराई.
‘‘ज्यादा न इतरा,’’ लतिका बोली, ‘‘उस का बेटा तुम से इक्कीस ही होगा उन्नीस नहीं.’’
‘‘यह उन्नीसइक्कीस का चक्कर छोड़ कर सो जाओ अब,’’ शेखर बोला.
मगर वह खुद सो नहीं सका. यही सोचता रहा कि क्यों मिलना चाह रही है ऋतु उस से?
अगले दिन ऋतु ने प्रणव के औफिस जाते ही शेखर को फोन कर के अपने घर बुला लिया. ऋतु को देखते ही शेखर को लगा कि प्रणव ने सिर्फ कदकाठी और चेहरे की लंबाई बाप की ली है अन्य नैननक्श तो ऋतु के ही हैं यानी वह शतप्रतिशत प्रणव की मां है. अपनी गलती का सही सुबूत मिलते ही वह ग्लानि और अपराधबोध से ग्रस्त हो गया.