‘‘शेखरजी इतने अच्छे इंसान हैं, कोई भी कुछ करना चाहेगा उन के लिए,’’ फिर थोड़ा संकोच करते हुए बोले, ‘‘वन्याजी, शेखरजी से तो नहीं पूछा कभी पर बारबार अब मन में यह प्रश्न उठ रहा है कि भाभीजी यह बीमारी सुन कर भी यहां...’’ वन्या ने बात पूरी नहीं होने दी. ठंडी सांस लेती हुई बोली, ‘‘जीजाजी इस मामले में दुखी ही रहे कि उन्हें मेरी बहन पत्नी के रूप में मिली.’’ प्रणव ने हैरान होते हुए पूछा, ‘‘अच्छा? शेखरजी जैसे व्यक्ति के साथ किसी को क्या परेशानी हो सकती है?’’
‘‘जीजाजी अपने मातापिता, भाई को बहुत प्यार करते हैं. मेरी बहन की नजर में यह उन की गलती है. मुझे तो समझ नहीं आता कि क्यों कोई पुरुष विवाह के बाद सिर्फ अपनी पत्नी के बारे में ही सोचे. यह क्या बात हुई. मेरी बहन की जिद पूरी तरह गलत है. अपनी बहन के स्वभाव पर मुझे शर्म आती है और अपने जीजाजी पर गर्व होता है. अपने मातापिता को प्यार करना क्या किसी पुरुष की इतनी बड़ी गलती है कि उसे ऐसी बीमारी से निबटने के लिए अकेला छोड़ दिया जाए.’’ धीरेधीरे बोलती हुई वन्या का मुंह गुस्से से लाल हो गया था. उस ने किसी तरह अपने को शांत किया. फिर दोनों ने अंदर जा कर शेखर पर नजर डाली. वे चुपचाप आंख बंद किए लेटे हुए थे. चेहरा बहुत उदास था. प्रणव यही सोच रहे थे किसी स्त्री पर उस की जिद लालच, क्रोध इतना हावी हो सकता है कि वह अपने पति की इस स्थिति में भी स्वयं को अपने पति से दूर रख सके. उन के दिल में चुपचाप लेटे हुए शेखर के लिए स्नेह और सम्मान की भावनाएं और बढ़ गई थीं.