लेखिका- रत्ना पांडे
नौकरी जौइन करने का वक्त आ गया और उर्वशी घर में सभी का आशीर्वाद ले कर चली गई.
औफिस जौइन करने के बाद वह उस स्कूल में पहुंची, जहां उस के बचपन की खौफनाक यादें जुड़ी हुईर् थीं. शिक्षिका के पद के लिए आवेदन पत्र देने के बहाने से वह कुछ टीचर्स से मिली और बातों ही बातों में खेलकूद की बातें छेड़ते हुए महेश के विषय में पूछ लिया. तब उसे पता चला कि महेश अब एक बहुत बड़े स्पोर्ट्स शोरूम का मालिक है.
महेश के विषय में यह सुन कर उर्वशी का खून खौल उठा. वह सोचने लगी कि उस की जिंदगी बरबाद करने वाला मौज की जिंदगी जी रहा है, किंतु अपनी उस गलती पर अब उसे अवश्य ही पछताना होगा.
इतना बड़ा जानामाना शोरूम ढूंढ़ने में उर्वशी को समय नहीं लगा. शोरूम के अंदर जैसे ही वह पहुंची उसे सामने ही महेश शान से बैठा हुआ दिखाई दिया. उसे देखते ही वह पहचान गई, वह थोड़ा सहम गई, किंतु तुरंत ही उस ने अपनेआप को संभाल लिया.
एक साधारण सी ड्रैस में बिना मेकअप के भी वह बहुत सुंदर लग रही थी. उर्वशी को देखते ही महेश की आंखें उस पर जा टिकीं. महेश को अनदेखा कर अंदर जा कर उस ने सेल्स मैन से कहा, ‘‘जी बैडमिंटन के रैकेट दिखाइए.’’
‘‘जी मैडम अभी दिखाता हूं.’’
तब तक महेश वहां आ गया और सेल्स मैन से बोला, ‘‘तुम बैंक जा कर चैक जमा कर के आओ, कस्टमर को मैं अटैंड करता हूं.’’
‘‘कहिए मैडम क्या चाहिए आप को?’’
‘‘जी बैडमिंटन के रैकेट दिखाइए,’’ उर्वशी ने जवाब दिया.