लेखिका- रत्ना पांडे
बैल बजते ही उर्वशी ने दरवाजा खोला और सामने महेश को देख कर ठंडी सांस ली. महेश उस के कंधे पर सिर रख कर रोने लगा.
उर्वशी ने उसे सांत्वना देते हुए पूछा, ‘‘महेश फोन क्यों नहीं उठाया तुम ने? मैं ने तुम्हें कितने फोन किए?’’
‘‘उर्मी मैं बाइक पर था, जब मुझे इस ऐक्सीडैंट का समाचार मिला, यह सुनते ही मेरे हाथ से मोबाइल गिर गया और पीछे से आ रही कार का पहिया उस के ऊपर से निकल गया. मैं होश में नहीं था, घर जा कर मैं ने कार ली और सीधे जबलपुर चला गया. मैं ने अपने मातापिता को खो दिया उर्मी, मैं बहुत अकेला महसूस कर रहा हूं. तुम जल्दीसेजल्दी मेरे जीवन में पूरी तरह से आ जाओ.’’
‘‘हां महेश, यह हमारे लिए बहुत ही दुखभरा समय है. कुछ दिनों बाद पापा के पास जा कर हम फिर से बात करेंगे.’’
‘‘उर्मी मैं चाहता हूं कि पापा के पास पहुंचने से पहले ही पूरी जायदाद तुम्हारे नाम कर दूं.’’
उर्वशी ने मन ही मन खुश होते हुए ऊपरी मन से कहा, ‘‘नहीं महेश उस की जरूरत नहीं है.’’
‘‘उर्मी मैं ने पापा से वादा किया है और उसे पूरा तो करना ही है.’’
1 सप्ताह के अंदर महेश ने अपनी पूरी जायदाद उर्वशी के नाम कर दी.
यह देख कर उर्वशी ने पूछा, ‘‘महेश, तुम इतना प्यार करते हो मुझ से?’’
‘‘हां उर्मी मैं ने तुम्हारा प्यार पाने के लिए, अपनी पत्नी को भी हमेशाहमेशा के लिए छोड़ दिया है. अब हमारे बीच कोई नहीं आ सकता.’’
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