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लेखिका- रत्ना पांडे

डिनर के बाद महेश ने उर्मी को उस के घर छोड़ दिया. बिस्तर पर लेट कर उर्वशी अपनी योजना को सफल होता देख खुश हो रही थी, किंतु आगे अब क्या और कैसे करना है, यह उस के समक्ष चुनौतीभरा कठिन प्रश्न था.

दूसरे दिन उर्वशी ने महेश को फोन कर के कहा, ‘‘हैलो महेश मैं 1 सप्ताह के लिए अपने घर जा रही हूं...’’

महेश ने बीच में ही उसे टोकते हुए कहा, ‘‘उर्मी, 1 सप्ताह, मैं कैसे रहूंगा तुम्हारे बिना?’’

‘‘महेश हमेशा साथ रहना है तो यह जुदाई तो सहन करनी ही होगी. मैं हमारी शादी की बात करने जा रही हूं, आखिर मुझे भी तो जल्दी है न.’’

उर्वशी के मुंह से यह बात सुन कर महेश खुश हो गया. उर्वशी अपने घर चली गई, महेश से यह कह कर कि उसे फोन नहीं करना.

1 सप्ताह का कह कर गई उर्वशी 15 दिनों तक भी वापस नहीं आई.

इधर महेश की बेचैनी बढ़ती जा रही थी. उर्वशी यही तो चाहती थी, अभी तक

सबकुछ उस की योजना के मुताबिक ही हो रहा था. 15 दिनों बाद उर्वशी वापस आई और उस ने महेश को फोन लगा कर बोला, ‘‘महेश एक बहुत ही दुखद समाचार ले कर आई हूं, शाम को डिनर पर मिलो तो तुम्हें सब विस्तार से बताऊंगी.’’

शाम को डिनर पर उर्वशी को उदास देख कर महेश ने पूछा, ‘‘क्या हुआ उर्मी? घर पर मना तो नहीं कर दिया न?’’

बहुत ही उदास मन से उर्वशी ने उसे बताया, ‘‘महेश मेरे पापा ने मेरी शादी तय कर दी है.’’

‘‘यह क्या कह रही हो उर्मी? तुम से बिना पूछे वे ऐसा कैसे कर सकते हैं?’’

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