मिताली से मुलाकात का दिन था. साउथ एक्स के एक रैस्टोरैंट में कौशलजी प्रतीक्षा कर रहे थे तभी मिताली को आते देख उन के चेहरे पर मुसकराहट फैल गई. पर मिताली आज चुपचुप व उदास थी.
‘‘क्या बात है? उदास लग रही हो?’’
‘‘क्या बताऊं, आज का दिन मेरे लिए ठीक नहीं है अभी आते वक्त मैट्रो में किसी ने मेरे बैग से मनीपर्स निकाल लिया. उस में रखे रुपए मां को भिजवाने थे,’’ उस की आंखें छलछला उठीं, ‘‘सौरी, मैं तो आप को खुशी देने आई थी पर अपना ही रोना ले कर बैठ गई,’’ इतना कह कर उस ने टिश्यूपेपर आंखों पर रख लिया.
‘‘तुम भी अजीब लड़की हो. इस में सौरी जैसी क्या बात है. यह बताओ कि कितने रुपए चाहिए मां को भेजने के लिए? कल तुम्हें मिल जाएंगे.’’
‘‘पर आप क्यों...’’ और आवाज रुंध गई थी मिताली की.
‘‘मुझ से यह रोनी सूरत नहीं देखी जाती, समझीं. अब ज्यादा मत सोचो और बताओ.’’
‘‘तो सर, अभी 10 हजार रुपए चाहिए. मां का इलाज भी चल रहा है और...पर मैं ये रुपए अगले महीने ही आप को दे पाऊंगी.’’
‘‘हांहां, यह बाद में सोच लेना. अभी तो अपना मूड ठीक करो और गरमगरम कौफी पियो.’’
‘‘थैंक्स फौर दिस हैल्प, सर,’’ उस ने कौशलजी का हाथ पकड़ धीरे से चूम लिया. कुछ पल वे प्रस्तर मूर्ति बने रह गए, पर मन में कुछ अच्छा लगा था.
2 वर्ष पहले पत्नी रमा की मृत्यु के बाद से कौशलजी उदास व अकेले पड़ गए थे. घर की ओर बढ़ते कदम बोझिल हो जाते. अकेला घर काटता सा प्रतीत होता. यों तो पुस्तकें, टीवी उन के साथी बनने के लिए हाजिर थे पर बातचीत, कुछ हंसी, मस्ती की खुराक के बिना उन का मन उदासी से घिरा रहता.