‘‘बुढ़ापे में तो बिस्तर पर चुपचाप सोना ही था लेकिन यहां तो आप ने 39 साल की उम्र में ही मुझे खाली पलंग के हवाले कर दिया है,’’ सोने से पहले आज भी लावण्या उदास सी अपने पति आनंद से वीडियो काल पर कह रही थी. उस का मन आनंद के बिना बिलकुल भी नहीं लगता था. दूसरे जिले में तबादले के बाद आनंद भी लावण्या के बगैर अधूरा सा हो गया था.
‘अब तो मेरा मन भी कर रहा है कि नौकरी छोड़ कर आ जाऊं घर वापस,’ आनंद ने भी बुझी सी आवाज में उस से अपने दिल का हाल बताया.
अब दिल चाहे जो भी कहे, सरकारी नौकरी भले साधारण ही क्यों न हो, लेकिन आज के जमाने में उस को छोड़ देना मुमकिन न था. इसे आनंद भी समझता था और लावण्या भी. सो, दोनों हमेशा की तरह फोन स्क्रीन के जरीए ही एकदूसरे की आंखों में डूबने की कोशिश करते रहे.
तभी लावण्या बोली, ‘‘लीजिए, सोनू भी बाथरूम से आ गया है, बात कीजिए और डांट सुनिए इस की,’’ कह कर लावण्या ने मोबाइल फोन अपने 13 साल के एकलौते बेटे सोनू को थमा दिया.
सोनू अपने पापा को देखते ही शुरू हो गया, ‘‘पापा, आप ने बोला था कि इस बार 15 दिनों के बीच में भी आएंगे... तो क्यों नहीं आए?’’
आनंद प्यार से उस को अपनी मजबूरियां बताता रहा. बात खत्म होने के बाद कमरे में नाइट बल्ब चमकने लगा और लावण्या सोनू को अपने सीने से लगा कर लेट गई.
सोनू फिर से जिद करने लगा, ‘‘मम्मी, आज कोई नई कहानी सुनाओ.’’