आप के भैया के लाख मना करने पर भी मैं ने आप को ऐबी बना दिया है... आप के पतन की दोषी मैं ही हूं...आप कहीं नहीं जाएंगे, जाना ही होगा तो मैं जाऊंगी,’’ कह कर उन्होंने अटैची से मेरे कपड़े निकाल कर हैंगर में डाल अलमारी में लटका दिए और पुस्तकें मेज पर लगा दीं.
‘‘किस अधिकार से आप मुझे रोक रही हैं?’’ मैं ने पूछा.
‘‘अधिकार की बात मत कीजिए, मैं नहीं जानती कि अधिकार किसे कहते हैं, बस आप कहीं नहीं जाएंगे, कह दिया सो कह दिया, कोई मेरी बात टाले, मुझे बरदाश्त नहीं.’’
‘‘सौमित्र और राघव की हुक्मउदूली तो आप बरदाश्त कर लेंगी,’’ सुनते ही उन्होंने मेरे मुंह पर तड़ातड़ चांटे बरसाने शुरू कर दिए. बदहवास सी सौमित्र... राघव... सौमित्र... राघव...चीखे जा रही थीं और मेरे मुंह पर थप्पड़ पर थप्पड़ मारे जा रही थीं. मैं हाथ पीछे बांधे मूर्तिवत खड़ा थप्पड़ खाता रहा और फिर मैं ने उन की कोली भर ली और उन के मुंह को दोनों हथेलियों के बीच ले कर उन से आंखें मिलाते हुए कहा, ‘‘मां, मुझे माफ कर दे, मैं ने तो कभी की सिगरेट पीनी छोड़ दी है. देखो, ये रहे सारे रुपए,’’ और मैं ने अपने बैड के नीचे रखे सौसौ के नोटों की ओर इशारा किया. फिर फफकफफक कर रो पड़ा.
उन्होंने मुझे कस कर अपनी छाती से लगा लिया. कुछ देर वे यों ही खड़ी रहीं, फिर साड़ी के पल्लू से अपने आंसू पोंछते हुए बोलीं, ‘‘ठीक है, मैं एक बार फिर विश्वास कर लेती हूं,’’ कह कर वे जाने लगीं.