ृ‘‘बंदापरवर थाम लो जिगर बन के प्यार फिर आया हूं. खिदमत में आप की हुजूर फिर वही दिल लाया हूं.’’
रेडियो पर आ रहे कर्णप्रिय गाने के बोलों को सुन कर प्रणति को लग रहा था कि मानो गाने बोल उस के लिए ही लिखे गए हैं. एक संगीत ही तो है जिस के बोलों को गुनगुनाते हुए वह अपनी सारी थकान भूल जाती है. इसीलिए रात को सोने से पहले वह साइड स्टूल पर रखा अपना रेडियो औन करती है, फिर दूसरे काम. यों तो रोज ही पुराने गाने आते हैं पर आज के इस गाने ने तो उस का दिल ही मोह लिया था. अमजद से अचानक हुई मुलाकात ने मानो उस की वीरान सी जिंदगी में उथलपुथल मचा दी थी. गाना गुनगुनाते हुए उस ने हलदी वाला दूध गिलास में डाला और बैड पर बैठ कर मोबाइल देखने लगी.
मोबाइल स्क्रीन को स्क्रोल करतेकरते उसे याद आने लगा लाइब्रेरी में अमजद का अपनी ओर अपलक ताकना, कालेज के पार्क में तोतामैना की तरह एकदूसरे की आंखों में आंखें डाल कर बैठे रहना, सहपाठियों के द्वारा उन्हें लैलामजनू कह कर मजे लेना, अपनी क्लास समाप्त होने के बाद भी उस की क्लास खत्म होने के इंतजार में अमजद का उस की क्लास के बाहर टकटकी लगाए रहना, कालेज समाप्त होने के बाद भी मिलने के बहाने खोजना, सैटल होने पर भविष्य के सुनहरे सपने बुनना, उस दिन अपने प्यार को इजहार करने और अमजद के प्रपोज करने के अद्भुत तरीके के बारे में सोच कर उस के गुलाबी होंठों पर मुसकराहट आ गई... पर उस के बाद... यह सोचते ही मानो उस के मन में ही नहीं मस्तिष्क में भी छन्न से कुछ टूट गया... वह नहीं सोचना चाहती अभी कुछ और... अपने मन में यह वाक्य दोहराते हुए उस ने खुद को यादों के साए से बाहर निकाला और बस अपनी अमजद से अगली मुलाकात के बारे में सोचने लगी. अमजद के विचारों में खोएखोए उसे कब नींद ने अपने आगोश में ले लिया पता ही नहीं चला.