कुछ देर पहले तक वह मातापिता की लाडली बेटी थी, जिस ने उन के हर सपने को पूरा कर के समाज में मान प्राप्त करने का अधिकारी बनाया था पर अब वह लाडली एक अनाथ सी बच्ची थी जिस की भावनाओं को समझने वाला, उस की आंखों से बहती अविरल अंश्रुधारा को पोंछने वाला कोई नहीं था. महज इसलिए कि वह एक विधर्मी से प्यार करने की गलती कर बैठी.
यह क्या वह तो आज तक अपने मातापिता को बड़ा ही आधुनिक और उदारवादी समझती थी जो अपनी बेटी के लिए कुछ भी करने को तैयार रहते थे पर आज तो उस के सामने अपने मातापिता का बेहद दकियानूसी और तानाशाही रूप सामने आया था जिन के लिए बेटी और उस की भावनाओं के स्थान पर केवल समाज और झठे दिखावे की चिंता थी. रोतेरोते उसे कब नींद आ गई पता ही नहीं चला.
कर्नल सिंह और उन की पत्नी रीमा को प्रणति बहुत पसंद आई, परंतु बात जन्मकुंडली पर आ कर अटक गई. कर्नल और प्रणति के पापा दोनों ही घोर अंधविश्वासी थे और उन के खानदानी पंडित के अनुसार कुंडली में मंगल दोष
होने से दोनों का विवाह होना
संभव नहीं था सो बात बनतेबनते रह गई. प्रणति की खुशी का ठिकाना न रहा परंतु अमजद से उस के प्यार के खुलासे के बाद अब घर में उस की स्थिति अपराधी जैसी हो गई थी. उस पर अनेक पहरे बैठा दिए गए थे.
एक सप्ताह बाद डाइनिंगटेबल पर खाना खाते समय पापा उस से बोले, ‘‘सौरी बेटा मैं मानता हूं उस दिन मुझे क्रोध आ गया था पर तुम अच्छी तरह जानती हो कि हम ने तुम्हें बड़े नाजों और लाड से पाला है, सदैव तुम्हारी हर इच्छा का मान रखा है. एक बार को तुम्हारी पसंद का कोई हिंदू होता तो फिर भी मैं सोचता पर यह मुसलमान... नहीं बेटा बस अमजद से विवाह की जिद छोड़ दो. यह करना हमारे वश में ही नहीं है. आखिर हम समाज के इज्जतदार प्राणी हैं.’’