मगर अभी असल परीक्षा बाकी थी. ससुराल में उस का जोरदार स्वागत हुआ. कर्नल सिंह और उन की पत्नी रीमा ने अपने दिल की बगिया में सब से सुंदर गुलाब की भांति रोप लिया था उसे परंतु मेजर मयंक का चुप्पी भरा रवैया उसे परेशान कर रहा था. शादी के बाद के रस्मोरिवाज के बाद जब सुहागरात के दिन मयंक कमरे में आए तो वह माटी की मूरत के समान बुत बनी रही. उस दिन मयंक ने बड़े ही शांत भाव से कमरे में प्रवेश किया तो वह बैड के एक कोने में सहम कर बैठ गई.
मयंक दरवाजा बंद कर के खिड़की के बाहर झंकते हुए बोले, ‘‘प्रणति मैं तुम से कुछ कहना चाहता हूं. बेहतर है कि आप चेंज कर लें. फिर हम बात करेंगे.’’
किसी अनहोनी आशंका से प्रणति का दिल जोरजोर से धड़कने लगा खैर खुद को किसी तरह संभाल कर वह चेंज करने चली गई. जब वह चेंज कर के आई तो मयंक बोले, ‘‘प्रणति, मैं जानता हूं कि मैं आप का गुनहगार हूं पर आज इकलौता बच्चा होना सब से बड़ी सजा है क्योंकि अपने इकलौते बच्चे पर मातापिता अपनी सारी इच्छाओं की गठरी लाद देते हैं और जम कर इमोशनली ब्लैकमेल भी करते हैं. मैं मानता हूं कि जो मैं ने किया और जो कहने जा रहा हूं वह ठीक नहीं है न नैतिकता के पैमाने पर और न ही व्यावहारिकता के पैमाने पर मैं मजबूर था. मातापिता का इकलौता बेटा हूं न इसलिए उन की इच्छाओं का मान रखना और उन्हें जीवित रखना मेरी मजबूरी थी...’’